पालतू
मुझे साँप से
बिल्कुल डर नहीं लगता।
सुना है ये भी मैंने
कि वह कुर्सी पर
या चारपाई पर
चढ़ता नहीं है
और चूकि मै पक्का शिकारी हूँ
इसलिए शेर चीते से भी
मैं डरता नहीं हूँ।
आदमी से थोड़ा
लगता है डर
इसलिए कि हमले से पहले
वह न फुफकारता है
और न दहाड़ता है।
फिर भी मै लेकिन
रहता हूँ सतर्क उससे
पर ये जो मेरी कुर्सी है
जिस पर नित प्रतिष्ठित होता हूँ
उसी के नीचे
मेरे तलवे के पास
मेरा पालतू कुत्ता
लार टपकाता है।
मैं उसके सिर पर
हाथों को फेरकर
पुचकारता ,दुलारता हूँ।
वो भी मेरी देह पर
उछल उछल कर
प्यार जताता है।
मेरा बदन लेकिन
भय से काँप जाता है।
जब मेरी गैरहाज़िरी मे
मेरा यह अजीज
मेरी कुर्सी पर
आसन जमाता है।
उपयुक्त पंक्तियां स्व. विनोदा नन्द झा की लिखित पुस्तक इन्द्रधनुष से ली गई है।