हम ख़ास बने आम के हाथों से इसलिए –
एक आम जगह आम के लिए बनाइए।
शमशीर लेके आता है जब कोई सिकन्दर।
चाहत – अमन की बोलती घर लौट जाइए।
अभिमान को चादर उढ़ा के स्वाभिमान की
अब और न नफरत न दुश्मनी बढ़ाइए ।
धागा है लौ के साथ जलेगा न देर तक
बन मोम अपनी देह के अन्दर बिठाइए।
परिभाषा किसी चीज़ की बनाइएगा तब
जब इनको परिस्थिति से अलग कर दिखाइए।
वो भी मखौल करने लग गए है आजकल
हे रब। इस करीबी की ये आदत छुडाइए।
उपयुक्त पंक्तियां स्व. विनोदा नन्द झा की लिखित पुस्तक इन्द्रधनुष से ली गई है।