स्वागत

बैठिए पास मेरे करीब आइए
इस तरह दूर रहके न तरसाइए।

देखिए कब से फैली है बांहे मेरी
इनके घेरे मे पल भर ही मुस्काइए।

शुष्क मरुभूमि सीने से लग के मेरे
बुँदियाँ स्वाति की इस पे बरसाइए।

बात चाहे कोई कीजिए या नहीं
करके नीची नज़र यूँ न शरमाइए।

जाइए अपनी मर्ज़ी से , दिल में मेरे –
किन्तु छोटी जगह एक बना जाइए।

उपयुक्त पंक्तियां स्व. विनोदा नन्द झा की लिखित पुस्तक इन्द्रधनुष से ली गई है।