महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है?

पूजा पपनेजा।

महाशिवरात्रि भारतीयों का एक प्रमुख त्यौहार है। यह भगवान शिव का प्रमुख पर्व है। और फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। क्योकि इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। आपको बता दें कि महाशिवरात्रि के इस दिन भगवान शिव के मंदिरो को सजाया जाता है और सभी भक्त इस दिन बेल पत्रों के द्वारा भगवान शिव की पूजा अर्चना करते है। और इसके साथ ही भक्त भगवान शिव पर दूध चढ़ाते है और भगवान शिव का व्रत रखते है।

लेकिन इसके पीछे की कहानी क्या है ? हम आज आपसे उसके बारे मे चर्चा करने वाले है। क्योकि शास्त्रों के अनुसार, देवी पार्वती ने शिव के लिए इस दिन कठोर तपस्या भी की थी। जिसके बाद उनका विवाह शिव जी से हुआ था।
लेकिन हम सब जानते है कि सती ने ही पार्वती के रूप मे जन्म लिया था और कहानी के अनुसार सती प्रजापति दक्ष की पुत्री थी और सती के पिता प्रजापति दक्ष भगवान शिव को पसंद नहीं करते थे।

इसलिए शुरुवात मे वे अपनी बेटी का विवाह शिव से नहीं करना चाहते थे लेकिन सती को बहुत समझाने और हठ कर बैठने के कारण उन्होने सती का विवाह शिव जी से कर दिया था।

वैसे कहते है कि प्रजापति दक्ष ने अपने घर मे अपनी पुत्री को यज्ञ मे नहीं बुलाया था जिसके बाद सती अपने पिता के घर जाती है और उसके बाद प्रजापति दक्ष भगवान शिव के बारे मे  सती को बहुत उल्टा सीधा बोलते है। और यह बात सती बर्दाश नहीं कर पाती इसलिए   यज्ञ की आहुति मे ही वह अपनी जान दें देती है।

इसकी जानकारी जब भगवान शिव को नन्दी के द्वारा मिलती है तो वे सती के पिता के पास जाते है और क्रोध मे आकर अपने त्रिशूल से प्रजापति दक्ष की गर्दन काट देते है। खैर अब हम आपको आगे की बात बताते है ।

उसके बाद भगवान शिव सती के वियोग मे चले जाते है जिसके बाद सभी देवी देवताओ को चिंता होने लगती है जिसमे वह कहते है कि भगवान शिव अगर खुद को नहीं सभांल पाते है तो यह संसार बिखर जाएगा।

इसलिए वह सती के पिंडो को अलग अलग जगह मे गिरा देते है जो अब अलग अलग मंदिर भी बन चुके है. लेकिन सती और पार्वती दोनों की कहानी मे ही शिव को पाना आसान नहीं था।

अगर कहानी मे देखा जाए तो शिव का प्यार भी इतना गहरा था कि सती माता को भी शिव के लिए पार्वती के रूप मे जन्म लेना पड़ा। और इसलिए पार्वती माता ने भी भगवान शिव को पाने के लिए तपस्या की थी। वैसे कहते है कि अगर प्यार गहरा हो तो आपका प्यार आपसे कभी दूर नहीं जा सकता। इसका जिक्र हम भगवान शिव और पार्वती माता की कहानी मे देख सकते है।
पार्वती का दौर
इसलिए भगवान शिव को पति के रूप मे पाने के लिए देवर्षि के कहने पर माँ पार्वती वन मे तपस्या करने चली जाती है। लेकिन प्रेम का यह सफर पार्वती के लिए भी आसान नहीं था। इसलिए भगवान शिव ने भी पार्वती की परीक्षा ली , जिसमे भगवान शिव ने भी सप्तऋषियों को पार्वती के पास भेजा और उनसे कहा कि तुम पार्वती के आगे मेरी बुराई करना लेकिन
जब वह पार्वती के पास जाते है तो पार्वती उनकी बिल्कुल नहीं सुनती जिसकी जानकारी वह भगवान शिव को देते है और इस तरह  भगवान शिव की ली गई इस परीक्षा मे पार्वती पास हो जाती है। तब भगवान शिव को भी यह समझ आता है कि सती ने दूसरा जन्म पार्वती के रूप मे लिया है जिसके बाद भगवान शिव उनसे खुश हो जाते है और इस तरह से पार्वती माता शिव जी की शादी हो जाती है।
लेकिन अगर हम कलयुग के प्रेम की तुलना उस युग से करे तो आज के समय मे वैसा प्रेम नहीं है। क्योकि हर इंसान आज के समय मे एक दूसरे के साथ स्वार्थ से जुड़ा है लेकिन अगर हम इस कहानी को समझने की कोशिश करे तो आज के समय मे ऐसा प्रेम मिलना अंसभव है इसलिए हमें इस कहानी से यह सीख मिलती है कि हर व्यक्ति को निस्वार्थ भाव से प्रेम करना चाहिए और अपने रिश्ते का मान रखना चाहिए और एक दूसरे के साथ स्वार्थ की भावना से जुड़े नहीं रहना चाहिए बल्कि एक दूसरे के साथ मिल कर रहना चाहिए।