वास्तविक वजूद

आज हर जगह
बातें होती है
समूह व समाज, की
लेकिन ,
समाज से सामाजिक आवाज़
समूह से सामूहिक आवाज़
निकलती कहाँ है ?
और जो निकलती है
वह किसी ताकतवर धुत्त द्वारा
व्यक्ति व्यक्ति को
अफ़ीम पिलाकर
मूर्छावस्था मे लाकर
असत्य की आवाज़ होती है।
न कही समूह है न समाज
हर जगह खड़ा है व्यक्ति
निपट अकेला
स्वयं से सटा हुआ।
सर्व से कटा हुआ।
उपयुक्त पंक्तियां स्व. विनोदा नन्द झा की लिखित पुस्तक इन्द्रधनुष से ली गई है।