ये घटा बरस बरस के तेरी याद ला रही है।
और याद लाके दिल को ये बड़ी सता रही है।
काली घटा को आते जो फलक मे देखता हूँ
मै सोचता हूँ शायद वो तुम्हीं को ला रही है।
ये घटा बरस बरस के तेरी याद ला रही है।
पहुँचा रही ये बदली ठंडक जमीं के दिल मे
मेरे दिल में बेरहम ये अतिश लगा रही है ।
ये घटा बरस बरस के तेरी याद ला रही है।
न बुझा सकेगा शायद फुरकत की आग कोई
ये बरस के इस जलन को उल्टे बढ़ा रही है।
ये घटा बरस – बरस के तेरी याद ला रही है।
बढ़ती हुई जलन का है नहीं इलाज कोई ,
इसे आँसूओ की धारा भी बुझा न पा रही है।
ये घटा बरस – बरस के तेरी याद ला रही है।
उपयुक्त पंक्तियां स्व. विनोदा नन्द झा की लिखित पुस्तक इन्द्रधनुष से ली गई है।