हरि कृपा

 

रावण को मारा राम ने
कंस को मारा कृष्ण ने।
दोनों को मारा हरि ने।
मोक्ष मिला, स्वर्ग गए दोनों।
सामान्य जन के लिए
हरि कृपा कहाँ होती?
होती है जोग व तप से
भक्ति और जप से
पर बाप रे लम्बी है राह वह भीड़ भरी।
लाइन है वहाँ बहुत बड़ी गारंटीहीन
हमारे मनीषियों ने भी
यही तो कहा है कि –
हज़ारों चलते है
पहुँचता है एक
इसलिए स्वयं को रावण
व समाज को कंस
बनाने मे लगा हूँ।
हरि के घर मे देर है , अंधेर नहीं
इसलिए वो आयेंगे ज़रूर आयेंगे
इतिहास है साक्षी
आते रहे हैं देर से
देर से ही आयेंगे
जब मेरे कसत्व व रावणत्व
होंगे पूर्णावस्था मे।
काफी समय है तब तक
दोनों हाथ लड्डू है।
भोग का चरमानन्द इस लोक मे।
मोक्ष का परमानन्द उस लोक मे।

उपयुक्त पंक्तियां स्व. विनोदा नन्द झा की लिखित पुस्तक इन्द्रधनुष से ली गई है।