शारदा सिन्हा, मरणोपरांत पद्म विभूषण से सम्मानित

देश में 76वें गणतंत्र दिवस का समारोह मनाया जा रहा है। इस विशेष अवसर पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने  वर्ष 2025 के लिए 139 पद्म पुरस्कार प्रदान करने को मंजूरी दी है, जिसमें सात पद्म विभूषण, 19 पद्म भूषण और 113 पद्म श्री पुरस्कार शामिल हैं। गायिका शारदा सिन्हा को मरणोपरांत पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया है।

यह पुरस्कार पाना वास्तव में लोकप्रिय लोक गायिका और हम सबके लिये सम्मान का क्षण है। उनकी आवाज में मिली क्षेत्रीय मिट्टी की खुशबू सीधे तन-मन को सुगंधित कर देती थी, है और रहेगी। वास्तव में शारदा सिन्हा,  बेहद सौम्य, शालीन और  क्षेत्र की मिट्टी की खूशबू पूरे देश-दुनियां में बिखेरती हुई एक ऐसी व्यक्तित्व की धनी महिला रहीं,  जिन्होंने भारतीय महिला के स्वरूप को थामे रखा।

वह एक शालीन, पारिवारिक और सबसे स्नेह करने वाली गायिका एवं महिला रहीं, जिन्होंने भारतीय महिला के हर रूप को आत्मसात कर दिखाया। वह आज वह शारीरिक रूप से हमारे बीच नहीं हैं, मगर हमारे आस-पास अपने मधुर लोकगीतों के साथ हमेशा रहेंगी।

शारदा सिन्हा का जन्म  1 अक्टूबर 1952 को बिहार के मिथिला क्षेत्र के सुपौल जिले के हुलास गांव में एक मध्यमवर्गीय ब्राह्मण परिवार में हुआ  था। उनके पिता  सुखदेव ठाकुर बिहार सरकार के शिक्षा विभाग में अधिकारी थे। उनके पिता ने बचपन में ही उनके संगीत के प्रति रुचि को पहचान लिया और घर पर ही एक शिक्षक से उन्हें गायन और नृत्य  की शिक्षा देनी शुरू कर दी।

शारदा सिन्हा ने अपनी पढ़ाई पटना विश्वविद्यालय से की और कला क्षेत्र में स्नातक की डिग्री प्राप्त की।  पढ़ाई के समय से ही उनका गायन की ओर रुझान बढ़ गया।  इस दौरान ही वह अपने क्षेत्र में आयोजित कार्यक्रमों में मिथिला  लोकगीत गाने लगी थीं।

कुछ ही समय में उनकी प्रसिद्धि क्षेत्र से बाहर जाने लगी और आस-पड़ोस के शहरों, फिर जिलों और फिर दूसरे राज्यों से उन्हें गायकी के लिए बुलावे आने लगे। इसी दौरान उनका बिहार में ‘पहिले पहिल हम कइनी छठ’ काफी मशहूर हो गया।

शारदा सिन्हा की शादी ब्रज किशोर कुमार से हुई। शादी के बाद उनके ससुराल में उनकी गायकी को लेकर कुछ विरोध हुआ, लेकिन उनके पति ने उन्हें पूरा सहयोग दिया। शारदा सिन्हा ने अपने करियर की शुरुआत मैथिली लोकगीत गाकर की। वे भोजपुरी, मैथिली, मगही  भाषाओ के भी गीत गाती थी। इलाहाबाद में प्रयाग संगीत समिति द्वारा आयोजित बसंत महोत्सव में उन्होंने वसंत ऋतु पर आधारित कई गीत प्रस्तुत किए।

इसके अलावा, शारदा सिन्हा ने बॉलीवुड में भी अपनी आवाज दी है। 1989 में रिलीज़ हुई फिल्म “मैंने प्यार किया” में “कहे तोसे सजना” गाकर हिंदी सिनेमा में अपनी पहचान बनाई। इसके अलावा, उन्होंने “गैंग्स ऑफ वासेपुर पार्ट 2” का “तार बिजली” और “चारफुटिया छोकरे” का “कौन सी नगरिया” जैसे लोकप्रिय गाने भी गाए। इस सूचि में “हम आपके हैं कौन” का एक अन्य गीत भी शामिल है।

1989 में उन्होंने हिंदी फिल्म “माई” में अभिनय भी किया।  उनकी बेमिसाल गायिकी के लिये उन्हें 2018 में गणतंत्र दिवस के अवसर पर भारत सरकार ने ‘पद्म भूषण’ से नवाजा जबकि साल 1991 में उन्हें ‘पद्मश्री’  ‌दिया गया। इसके अलावा उन्हें कई प्रतिष्ठित सम्मान से सम्मानित किया गया। उन्होंने बिहार से निकलकर देश ही नहीं दुनियां में अपने लोकगीतों का प्रसार किया जिन्हें आज भी गुनगुनाया जाता है।

सोशल मीडिया के इस दौर में उन्हें यूट्यूब और इंस्टाग्राम पर भी काफी देखा और पसंद किया जा रहा था। हालांकि यह सिलसिला अधिक दिनों तक नहीं चल पाया, क्योंकि वह पिछले कई सालों से जिस मल्टिपल मायोलामा बीमारी से पीड़ित थीं, उसने उन्हें इस दुनियां को छोड़ने के लिये मजबूर कर दिया। इसके साथ ही उन्होने 5 नवंबर 2024 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया।