अफ़वाह

बीमार मैं पड़ा हवा मे बात यूँ उडी ।
इस सख्स का दुनियाँ से जनाजा निकल गया ,
बद कुछ ने कहा , कुछ ने नेक और कुछ ने यूँ
किसका नहीं इस हादसे से दिल दहल गया।
एक दोस्त ने पत्नी से मेरी फोन पर कहा ।
क्यों काल का कुचक्र आप पर ही चल गया।
ऑफिस मे समारोह एक हो रहा था जो,
वो क्षण मे कंडोलेस सभा मे बदल गया।
कैसे है मियाँ आप ? ये पूछा न किसी ने,
इस बात से क्या जिस्म मेरा मन भी जल गया ,
अफ़वाह वो काई है जो बक्शा न किसी को ,
हर शख्स जो इस पर चला हरदम फिसल गया।

उपर्युक्त पंक्तियां स्व. विनोदा नन्द झा की लिखित पुस्तक इन्द्रधनुष से ली गई है।