लोहड़ी के एक दिन बाद मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है। हर साल 14 जनवरी या कभी-कभी 15 जनवरी को मनाया जाने वाला मकरसंक्रांति पर्व सूर्य के मकर रेखा से उत्तरायण होने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इस दिन से दिन बड़े और रातें छोटी होने लगती हैं। इसमें सूर्य की पूजा अर्चना की जाती है।
इस अवसर पर दान पुण्य किया जाता है, और माना जाता है कि यह दान आपको समृद्धि प्रदान करता है। इस पर्व का दूसरा नाम खिचड़ी भी है। दाल, चावल और सब्जियों से तैयार खिचड़ी स्वास्थ्यवर्धक होने के साथ ही ठंढ में शरीर को गर्मी और स्फूर्ति देने वाला भोजन माना जाता है।
भारत के विभिन्न भागों में इस दिन खिचड़ी खाते हैं तो वहीं बिहार के अधिकांश जगहों में इस दिन दही चिड़वा खाने का चलन है। मैथिल लोग दही-चिड़वा-चीनी, तिल के लड्डू, नया गुड़ा और चावल का मिश्रण और सब्जी जमकर खाते हैं।
कृषि प्रधान देश होने के कारण इस पर्व का जुड़ाव कृषि से भी है। यह नई फसलों के आने का भी त्योहार है। मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है।
हरिद्वार से लेकर प्रयागराज तक गंगा में डूबकी लगाने के लिये इस दिन श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं। हालांकि इस बार प्रयागराज के महाकुंभ में आस्था की डुबकी लगाने वाले की तादाद काफी बड़ी है।
144 साल बाद लगने वाला यह महाकुंभ बेहद खास और तन-मन को तृप्त करने वाला है। इसलिये यहां देश के हर एक कोने के साथ विदेशों से भी श्रद्धालु मोक्ष की तलाश और कुंभ का महात्म देखने आ रहे हैं।