युवाओं में अनंत ऊर्जा का स्रोत है।
स्वामी विवेकानंद का मानना था कि युवाओं में अनंत ऊर्जा का स्रोत है और वे किसी भी देश की सबसे बहुमूल्य संपत्ति होते हैं। यदि इनकी ऊर्जा को सही दिशा प्रदान की जाए तो राष्ट्र के विकास को नया आयाम मिल सकता है। जिसके जीवन में ध्येय नहीं है, जिसके जीवन का कोई लक्ष्य नहीं है, उसका जीवन व्यर्थ है। युवाओं को चरित्र निर्माण की ओर प्रेरित करते हुए उन्होंने कहा कि हर मनुष्य जन्म से ही दैवीय गुणों से परिपूर्ण होता है। यह गुण सत्य, निष्ठा, समर्पण, साहस एवं विश्वास से जागृत होते हैं। इनको अपने आचरण में लाने से व्यक्ति महान एवं चरित्रवान बन सकता है।
स्वामी विवेकानन्द ने युवा वर्ग को चरित्र निर्माण के पांच सूत्र दिए हैं –
- आत्मविश्वास, 2. आत्मनिर्भरता, 3. आत्मज्ञान, आत्मसंयम, 5. आत्मत्याग।
इन पांचों सूत्रों का पालन करके युवा स्वयं के व्यक्तित्व के साथ-साथ देश और समाज का भी पुनर्निर्माण कर सकता है। स्वामी जी के अनुसार, आदर्श को पकड़ने के लिए सहस्त्र बार आगे बढ़ो और फिर भी यदि असफल हो जाओ, तो एक बार फिर नया प्रयास अवश्य करो। इस आधार पर सफलता सहज ही निश्चित हो जाती है।
12 जनवरी 1863 को पौष संक्रांति के शुभ दिन कलकत्ता के दत्त परिवार में नरेन्द्र दत्त का जन्म हुआ। नरेन्द्र दत्त, विवेकानन्द के बचपन का नाम था। वह बचपन से ही ईश्वर का ध्यान करते और गौतम बुद्ध के दर्शन से प्रभावित थे। विवेकानंद, ब्रह्म समाज के केशव चन्द्र सेन के संपर्क में भी रहे। महज 18 वर्ष की आयु में उनका रामकृष्ण परमहंस के साथ प्रथम साक्षात्कार हुआ।
उस वक्त उन्होंने परमहंस से पूछा था कि महाशय, क्या आपने ईश्वर को देखा है? इस पर रामकृष्ण परमहंस जी का उत्तर था — हां देखा है, अभी भी देख रहा हूं। ईश्वर को अनुभव से सिर्फ महसूस किया जा सकता है। उसी दिन से विवेकानन्द ने रामकृष्ण परमहंस को अपना गुरु बना लिया।
एक बार अपनी गरीबी से तंग आकर विवेकानन्द ने स्वामी जी से गरीबी से छुटकारा दिलाने की बात कही। तब गुरु रामकृष्ण, विवेकानन्द को कलकत्ता के दक्षिणेश्वर काली माता के मंदिर ले गए। यहां माता के सामने समाधि लगाई। इस दौरान उनके मुख से ‘मां मुझे वैराग्य दो’ तीन बार निकला। तब गुरु रामकृष्ण परमहंस ने उन्हें समझाया कि उनका जन्म भौतिक सुख-सुविधा भोगने के लिए नहीं अपितु गरीबों को ऊंचा उठाने के लिए हुआ है।
1886 में रामकृष्ण परमहंस की महासमाधि के पश्चात् उन्होंने कलकत्ता में ‘बेलूर मठ’ की स्थापना की और उनके शिष्यों को संगठित किया। उन्हीं के एक शिष्य खेतड़ी के राजा अजीत सिंह ने उन्हें ‘स्वामी विवेकानन्द’ नाम दिया।
1 मई 1887 को विवेकानन्द जी ने कुछ बुद्धिजीवियों, मेहनती और ईमानदार लोगों को संगठित करके कलकत्ता में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। जिसका उद्देश्य था व्यावहारिक वेदांत ज्ञान के साथ-साथ विभिन्न सामाजिक कार्य अस्पताल, स्कूल-कॉलेज, छात्रावास, ग्रामीण विकास केन्द्र का संचालन के साथ-साथ प्राकृतिक आपदाओं जैसे — बाढ़, भूकंप, तूफान, महामारी आदि से पीड़ितों की सहायता करना।
विश्व बंधुत्व के एक साधक के रूप में सामने आए
11 सितम्बर 1893 को अमेरिका के शिकागो में आयोजित सर्व धर्म सम्मेलन में उन्होंने वहां उपस्थित सभी को ‘भाइयों एवं बहनों’ संबोधित करके सबका दिल जीत लिया था। यहीं पर उन्होंने शिव पुराण की एक श्लोक का अर्थ बताते हुए कहा कि — सभी नदियां जैसे विभिन्न उद्गमों से निकलकर समुद्र में जा मिलती है उसी प्रकार सभी धर्मों का गंतव्य एक ही है, इसलिए एक दूसरे को अच्छा-बुरा कहना व्यर्थ है।
यहां उन्होंने अमेरिका वासियों को भारतीय आध्यात्मिकता एवं सांस्कृतिक विरासत सीखने को कहा तो स्वयं भी उनके विज्ञान एवं तकनीकी ज्ञान से अत्यंत प्रभावित हुए। इस प्रकार वे विश्व बंधुत्व के एक साधक के रूप में सामने आते हैं। अमेरिका में उनके धर्म संबंधी विचार और ओजस्वी भाषण को सुनकर उनके भक्तों का एक बड़ा समुदाय बन गया था। वहां की मीडिया ने उन्हें ‘साइक्लोनिक हिन्दु’ का नाम दे डाला था।
धर्म को सेवा का केन्द्र मानकर ही आध्यात्मिक चिंतन किया
युवा सन्यासी स्वामी विवेकानन्द ने धर्म को सेवा का केन्द्र मानकर ही आध्यात्मिक चिंतन किया था। उन्होंने संपूर्ण भारत के सामाजिक, धार्मिक और राजनैतिक पुनर्जागरण के क्षेत्र में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। राष्ट्रप्रेम की भावना उनमें कूट-कूट कर भरी हुई थी।
4 जुलाई 1902 को 39 वर्ष की अल्पायु में अपना शरीर त्यागने वाले स्वामी विवेकानन्द के बताए हुए रास्ते पर समाज को लौटना होगा। युवाओं में वैचारिक दृष्टि से आज एक बड़े परिवर्तन की आवश्यकता है। रामकृष्ण मिशन इस परिवर्तन की दिशा में काम कर रहा है। बदलाव आने में समय लगता है लेकिन इसकी शुरुआत देश में हो चुकी है।
देश के विभिन्न स्थलों पर रामकृष्ण मिशन आश्रम युवाओं को नैतिक रूप से शिक्षित करते हुए उन्हें आत्मनिर्भर बनाकर चरित्रवान बनाने की दिशा में लगातार प्रयासरत हैं। रामकृष्ण मिशन आश्रम की कई टीमें इसके लिए सामूहिक प्रयास कर रही है। अखंडानंद कोचिंग सेंटर, विवेकानन्द योग वाहिनी, विवेकानन्द सेवा संघ, विवेकानन्द फोरम, शारदा महिला समिति, विवेकानन्द बालक दल और शारदा बालिका दल आदि के जरिए युवाओं का चरित्र निर्माण कर उन्हें देश का जिम्मेदार नागरिक बनाया जा रहा है।
लेखिका झारखंड के चाईबासा स्थित महिला कॉलेज में इंटरमीडिएट विभाग में हिंदी की शिक्षिका हैं।