ग़मे फ़िराक

मैं सारी रात गिनता रह गया अनगिनत सितारों को
बताओ क्या करुँ जो नींद बिल्कुल ही नहीं आए।

तुम्हारी याद सीने मे सूई ऐसी चुभाती है ।
इलाजे – दर्द बतलाओ खलिश को जो मिटा जाए।

गमे – फुरकत जो तड़पाता मज़ा लेता तड़पने का
मगर बेदर्द ने क्या क्या सितम मुझ पे नहीं ढाए।

दवायें बेहसर फिर रोक पाए  कोन मरने से
दुआयें ही बची है जो मुझे कुछ देर बहलाए।

हवा तुम थक गई लेकिन कहो जल्दी से उनका हाल
जरा दम लो , दिले – बेताब इतना भी न कह पाए।

उपर्युक्त पंक्तियां स्व. विनोदा नन्द झा की लिखित पुस्तक इन्द्रधनुष से ली गई है।