मधुबनी पेन्टिंग एक स्थानीय चित्रकला है, जो मिथिलांचल के मधुबनी क्षेत्र से संबंध रखती है। चावल के पिसे आटे का गाढ़ा घोल जिसे मैथिली में पिठार, कहा जाता है तथा अन्य फूलों आदि से प्राप्त स्थानीय एवं स्वनिर्मित रंगो की सोलह संस्कारो जैसे- जन्म , मुंडन, उपनयन, विवाहोत्सव आदि पर महिलाओं द्वारा मुख्यतः घरों के फर्श और कभी-कभी दीवारों पर रंगोली की तरह चित्रांकन ही मधुबनी पेन्टिंग कहलाती है।
इस रंगोली को मैथिली मे “अइपन” कहते हैं। प्राचीनकाल मे जब अधिकांश मिटटी के घर होते थे, उस समय यह मिटटी की दिवारों पर बनाई जाती थी पर आजकल यह कपड़े, हस्त निर्मित कागज़ व कैनवास पर भी बनाई जाती है।
सोलह संस्कारो के अंतर्गत प्रत्येक संस्कार हेतु अलग – अलग प्रकार का चित्रांकन होता है। इसके अलावा राधा , पार्वती, काली आदि विविध देवी देवताओं का प्रासंगिक चित्रण भी किया जाता है, क्योकि जिस समय यह प्रांरभ हुआ, उस समय मिथिला में शैव – कल्ट और कृष्ण – कल्ट का सर्वाधिक प्रभाव था।
यह, मधुबनी पेन्टिंग इसलिए कहलाती है क्योकि इसका प्रांरभ मिथिलांचल स्थित मधुबनी जिला अंतर्गत मधुबनी रेलवे स्टेशन से 4 -5 किलोमीटर की दूरी पर बसे एक गांव जितवापुर से होता है जो बाद मे पूरे मधुबनी मे प्रसारित हुई।
आजकल इस पेन्टिंग मे केमिकल कलर भी प्रयोग में आने लगे हैं। यह एक उत्कृष्ट मनमोहक व नयनाभिराम पेन्टिंग है। राष्ट्रीय स्तर पर साठ के पूर्वाध दशक तक गुमनामी के अँधेरे मे डूबी यह पेन्टिंग साठ के उत्तरार्ध एवं सत्तर के पूर्वाध मे भारत के तत्कालीन रेल मंत्री स्व. ललित नारायण मिश्र द्वारा व्यापक रूप से प्रोत्साहित एवं समर्थित होकर अब न केवल राष्टीय वरन् अंतर्राष्टीय स्तर पर भी ख्याति प्राप्त कर चुकी है।
मंत्री जी की ही सहायता से जिस गाँव में इस पेन्टिंग की शुरुआत हुई थी वहाँ की प्रसिद्व व दक्ष चित्रकारा सीता देवी इन चित्रों के प्रदर्शन के लिये अमेरिका(यूएसए) भी गई। बिहार के बाहर अन्य प्रांतो के लोग सत्तर के दशक मे जयन्ती जनता एक्सप्रेस(दिल्ली – समस्तीपुर – दिल्ली) मे यदि कभी यात्रा किए होंगें तो रेल के डिब्बे के अन्य दीवारों पर मधुबनी पेंटिंग की सुरम्य झांकी अवश्य देखी होगी।
मधुबनी पेंटिंग से संबंधित यह लेख स्व. बी.एन.झा की लिखी पुस्तक एक माटी दो अध्याय से साभार ली गई है।