गज़ल
मेमना शायद समझकर सच छुपाया जा रहा है।
क्या कहें? हर कुछ हमें उल्टा दिखाया जा रहा है।
दीप हर छत पर जला बस एक इस सारे शहर में
सेठजी की मौत का मातम मनाया जा रहा है।
हर गली सुनसान थी, फिर आज क्यों यह भीड़ उमड़ी?
कौन जाने किस घडी करफ्यू लगाया जा रहा है।
वारदातों मे न जाने प्राण कितने जा चुके हैं
दस मरे और बीस घायल ही छपाया जा रहा है।
कीमतों की बढ़ रही रफ़्तार राकेट से जियादा
और लोकल टैक्स दो प्रतिशत बढ़ाया जा रहा है।
बढ़ रहा है रोज जंगे-कौम पर टी. वी. मे देखो
राम के कंधे से रहिमन को मिलाया जा रहा है।
लौहकण बारीक खाद्यानो मे बस आधे मिलाकर
मुल्क के लोगों को फौलादी बनाया जा रहा है।
आ रहे है राष्ट्रपति उस मुल्क के अपने शहर में
हर भिखारी को सवेरे से भगाया जा रहा है।
उपरोक्त गज़ल स्वर्गीय विनोदा नन्द झा के लिखे गीत संग्रह इन्द्रधनुष से साभार उद्धृत है।