प्रकाश पर्व के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हर वर्ष 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस के रूप में मनाए जाने की घोषणा की। उन्होंने ट्वीट कर कहा कि आज, श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के प्रकाश पर्व के पावन अवसर पर, मुझे यह बताते हुए गर्व हो रहा है कि इस वर्ष से, 26 दिसंबर को ‘वीर बाल दिवस’ के रूप में मनाया जाएगा।
यह साहिबजादों के न्याय के लिये किये गये साहस के लिए एक उपयुक्त श्रद्धांजलि है। इस घोषणा के बाद जहां हर ओर इसके स्वागतयोग्य प्रतिक्रियाएं आईं वहीं पश्चिमी दिल्ली के सांसद प्रवेश साहिब सिंह वर्मा ने प्रधानमंत्री मोदी को धन्यवाद दिया है।
दरअसल, 4 अप्रैल, 2018 को एक ज्ञापन में, प्रवेश साहिब सिंह ने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी से बाल दिवस के उत्सव को 14 नवंबर से 26 दिसंबर को स्थानांतरित करने का अनुरोध किया था। गुरु गोबिंद सिंह जी के बड़े साहिबज़ादे चमकौर की लड़ाई में शहीद हुए थे तथा छोटे साहिबजादे, मुग़ल गवर्नर – वजीर खान के द्वारा सिर्हिंद में ईंटों में ज़िंदा चिनवा दिए गए थे। ऐसा इन साहिबज़ादों की स्मृति का आदर करने के उद्येश्य से किया गया।
प्रवेश वर्मा ने उल्लेख किया कि बाल दिवस कैसे बच्चों और उनकी भलाई के लिए समर्पित है। इस प्रकार, भारत के समृद्ध अतीत और उन बच्चों की कहानियों पर गौर करना महत्वपूर्ण है जिन्होंने सबसे कठिन परिस्थितियों का सम्मान किया और इतिहास की रचना की। यह हमारे देश की युवा पीढ़ी को प्रेरणा प्रदान करेगी।
इस बारे में सांसद ने तर्क दिया कि चूंकि 26 दिसंबर को छोटे साहिबजादे शहीद हुए थे, इसलिए उनके बलिदान को बाल दिवस के रूप में सम्मानित किया जाना चाहिए। यह बच्चों को अपने साहस में विश्वास रखने और सही के लिए लड़ने के अभियान के बारे में याद दिलाएगा। यह प्रेरणा के सच्चे स्रोत के रूप में काम करेगा और हमारे देश के समृद्ध इतिहास की एक झलक देगा।
इसके लिए, उन्होंने इस पहल का समर्थन करने वाले सांसदों के हस्ताक्षर एकत्र करने के लिए एक अभियान शुरू किया, जिसके पक्ष में 134 हस्ताक्षरों को अंतिम रूप दिया गया। जिसके बाद आज, श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के प्रकाश पर्व के शुभ अवसर पर, प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने ट्विटर पर यह घोषणा की कि 26 दिसंबर को अब से ‘वीर बाल दिवस’ के रूप में मनाया जाएगा, जो साहिबजादों और उनके साहस को एक उचित श्रद्धांजलि है।
सांसद ने कहा कि यह घोषणा वर्तमान सरकार की लोकतांत्रिक और सर्व-समावेशी प्रकृति का एक सच्चा उदाहरण है, जो अपने प्रतिनिधियों द्वारा उठाई गई लोगों की मांगों को सुनती है। यह मिसाल आने वाले दशकों के लिए इस देश के युवाओं को लाभान्वित करेगा।