चिन्मय दत्ता।
आज देश के ग्यारहवें राष्ट्रपति अब्दुल कलाम की जयन्ती मनाई जा रही है। इस अवसर पर जगह-जगह कई कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं और उन्हें याद किया जा रहा है।
डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने एक राष्ट्रपति के रूप में देश के सर्वोच्च पद को एक सच्चे मानवतावादी के रूप में निभाया। आम लोगों के दर्द को समझा और उनके आंसू पोछने के भरपूर प्रयास किये। वह हमेशा युवाओं, छात्रों को प्राथमिकता देते थे। उन्होंने अपनी असाधारण सोच और वैज्ञानिक उपलब्धियों से भारत देश को ताकतवर बनाया।
मिसाइल मैन के रूप में प्रसिद्ध अवुल पकिर जैनुलअबदीन अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम में हुआ। इनके पिता जैनुलअबिदीन एक नाविक और माता अशिअम्मा एक गृहणी थी।
रामेश्वरम पंचायत के प्राथमिक विद्यालय में अध्ययन के साथ पिता की आर्थिक मदद के लिए बालक कलाम स्कूल के बाद समाचार पत्र वितरण का कार्य करते थे। 1950 में इन्होंने मद्रास इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी से अंतरिक्ष विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त की।
विज्ञान क्षेत्र में सफलता हासिल करने के लिए इन्हें 1981 में पद्म भूषण और 1990 में पद्म विभूषण से विभूषित करने के अतिरिक्त रक्षा अनुसंधान क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए 1997 में इन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
इसके अतिरिक्त 1998 में राष्ट्रीय एकता के लिए इंदिरा गांधी अवॉर्ड इन्होंने अपने नाम ही नहीं किया बल्कि विश्व के चालीस विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की।
18 जुलाई 2002 को नब्बे बहुमत से इन्हें भारत का राष्ट्रपति निर्वाचित किया गया फिर इन्होंने 25 जुलाई 2002 से 25 जुलाई 2007 तक यहे भारत के ग्यारहवें राष्ट्रपति के पद को विभूषित किए। मेघालय स्थित शिलांग में 27 जुलाई 1915 को इनका देहावसान हो गया।
ये भारत को अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में दुनिया का सिरमौर राष्ट्र बनते देखना चाहते थे और परमाणु हथियारों के क्षेत्र में ये भारत को सुपर पावर बनाने की बात सोचते रहते थे। इन्होंने साहित्यिक रूप से अपने विचारों को बहुत सारे पुस्तकों में समाहित किया है।