जब याद प्रिया की आती है
हर फूल पे तितली उड़ती हर पेड़ पे कोयल गाती है
सुध बुध मेरी है खो जाती जब याद प्रिया की आती है
धरती के कोने-कोने में ऋतुराज बसंत समाया है
पेड़ों में कोमल किसलय उद्यानों में फूल खिलाया है
लेकिन उनके बिन ये सारी सुंदरता मुझे न भाती है
सुध बुध मेरी है खो जाती जब याद प्रिया की आती है
मधुमास धरा के जन के मन में मधु की बरसा करता है
पर सजनी बिन हर रात दिवस मन मेरा तड़पा करता है
ये आग विरह की है प्रचंड मेरे उर को झुलसाती है
सुध बुध मेरी है खो जाती जब याद प्रिया की आती है
अब रजनीगंधा की सुगंध खिड़की से आती रहती है
उस काल मेरे दो नयनों से आंसू की धारा बहती है
करवटें बदलता रहता हूं और नींद दूर उड़ जाती है
सुध बुध मेरी है खो जाती जब याद प्रिया की आती है
ऐ सुनो ! किसी कवि ने कविता में लिखा ‘विरह जीवन है’।
पर नहीं ! नहीं ! यह प्रथम घुटन और तत्पश्चात् मरन है
हर घड़ी विरह की है नागिन जो मुझको गरल पिलाती है
सुध-बुध मेरी है खो जाती जब याद प्रिया की आती है
शब्दार्थ- किसलय- नई नई कोमल पत्तियां, उद्यानों- बागों, मधुमास-बसंत, प्रचंड-उग्र, गरल-जहर।
यह कविता, कवि व लेखक स्वर्गीय बी.एन.झा की पुस्तक इन्द्रधनुष से साभार ली गई है।