गीतकार ही नहीं पटकथाकार रहे कैफ़ी आज़मी

     चिन्मय दत्ता, चाईबासा, झारखंड
सैय्यद अतहर हुसैन रिज़वी का जन्म उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले स्थित मिजवां गांव में एक मुस्लिम परिवार में 14 जनवरी 1919 को हुआ। बाद में ये कैफ़ी आज़मी के रूप में जाने गए। इन्हें ग्रामीण माहौल में कविताएं पढ़ने का शौक लगा इसके बाद लिखने भी लगे।  ग्यारह साल की उम्र में इन्होंने अपनी पहली गज़ल लिखी और किशोर होते-होते मुशायरे में शामिल होने लगे।
1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान इन्होंने फारसी और उर्दू की पढ़ाई छोड़ दी। 1943 में साम्यवादी दल ने बम्बई कार्यालय शुरू किया जिसकी जिम्मेदारी इन्हें दी गई फिर बम्बई आकर इन्होने उर्दू जर्नल ‘मजदूर मोहल्ला’ का संपादन किया जिससे लेखनी के प्रगति के रास्ते खुलते गए।  गीतकार ही नहीं बल्कि पटकथाकार के रूप में भी स्थापित कैफी आजमी का पहला कविता संग्रह ‘झंकार’ 1943 में प्रकाशित हुआ।
1947 में इन्होंने एक मुशायरा में भाग लेने के लिए हैदराबाद का दौरा किया जहां इनकी मुलाकात शौकत आज़मी से हुई और इन्होंने शादी कर ली। आगे जाकर शौकत एक प्रसिद्ध अभिनेत्री बन गई। 1974 में भारत सरकार ने इन्हें पद्मश्री से विभूषित किया इसके बाद 1998 में महाराष्ट्र सरकार ने ज्ञानेश्वर पुरस्कार से सम्मानित किया। 2000 में इन्हें दिल्ली सरकार द्वारा दिल्ली उर्दू अकादमी द्वारा पहला मिलेनियन पुरस्कार दिया गया।
10 मई 2002 को ये यह गुनगुनाते इस दुनिया से चल दिए : ये दुनिया, ये महफिल मेरे काम की नहीं…। भारत सरकार ने इन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए ‘कैफ़ियत एक्सप्रेस’ नामक एक ट्रेन का उद्घाटन किया है जो उनके गृहनगर आज़मगढ़ से पुरानी दिल्ली तक चलती है। ये कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि इनकी सुपुत्री शबाना आज़मी हिंदी फिल्मों की एक अज़ीम अदाकारा बनी।
कैफ़ी आज़मी की जयंती पर पाठक मंच के कार्यक्रम इन्द्रधनुष की 813वीं कड़ी में मंच की सचिव शिवानी दत्ता की अध्यक्षता में यह जानकारी दी गई।
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