व्यंग्य लेखन के लिये विख्यात रहे साहित्यकार पंडित श्रीलाल शुक्ल

चिन्मय दत्ता, चाईबासा, झारखंड।
पंडित श्रीलाल शुक्ल का जन्म उत्तर प्रदेश के लखनऊ स्थित अतरौली गांव में 31 दिसम्बर 1925 को हुआ था। श्रीलाल शुक्ल, लखनऊ जनपद के समकालीन कथा-साहित्य में उद्देश्यपूर्ण व्यंग्य लेखन के लिए विख्यात साहित्यकार माने जाते थे।
इन्होंने 1947 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक की परीक्षा पास करने के बाद विधिवत लेखन 1954 से शुरू किया। इनका पहला उपन्यास ‘सूनी घाटी का सूरज’ 1957 में प्रकाशित हुआ। इसके बाद इनके द्वारा लिखित व्यंग ‘अंगद का पाँव’ 1958 में प्रकाशित हुई थी। स्वतंत्रता के बाद भारत के ग्रामीण जीवन की मूल्यहीनता को परत दर परत उघाड़ने वाले 1968 में प्रकाशित उपन्यास ‘राग दरबारी’ के लिए 1969 में इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से विभूषित किया गया। इसके साथ ही वर्ष 1978 में इन्हें मध्य प्रदेश हिन्दी साहित्य परिषद द्वारा पुरस्कृत किया गया।
इनके प्रसिद्ध उपन्यास ‘राग दरबारी’ पर 1986 में दूरदर्शन पर प्रसारित धारावाहिक को लाखों दर्शकों की सराहना मिली। अपनी अद्भुत लेखनी के लिये इन्होंने कई प्रतिष्ठित सम्मान प्राप्त किये, जिनमें, 1988 में हिन्दी संस्थान का साहित्य भूषण पुरस्कार, 1991 में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय का गोयल साहित्यिक पुरस्कार, 1994 में हिन्दी संस्थान का लोहिया अतिविशिष्ट सम्मान, 1996 में मध्य प्रदेश सरकार का शरद जोशी सम्मान, 1997 में मध्य प्रदेश सरकार का मैथिली शरण गुप्त सम्मान, 1999 में बिड़ला फाउन्डेशन का व्यास सम्मान, 2005 में उत्तर प्रदेश सरकार का यश भारती सम्मान और 2008 में भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से विभूषित होने के बाद 2009 में ज्ञानपीठ सम्मान अपने नाम किया। 28 अक्टूबर 2011 को इनके देहावसान होने के बाद 2017 में भारतीय डाक विभाग ने इनके नाम पर डाक टिकट जारी कर इन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।
पंडित श्रीलाल शुक्ल की जयंती पर पाठक मंच के कार्यक्रम इन्द्रधनुष की 811वीं कड़ी में मंच की सचिव शिवानी दत्ता की अध्यक्षता में यह जानकारी दी गई।
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