वी.के. मूर्ति के नाम रही भारत की पहली सिनेमास्कोप फिल्म

चिन्मय दत्ता, चाईबासा, झारखंड।
वेंकटरामा पंडित कृष्णमूर्ति का जन्म 26 नवम्बर 1923 को कर्नाटक स्थित मैसूर के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ। इनकी शिक्षा लक्ष्मीपुरम स्कूल में हुई जहां इन्होंने संगीत को वैकल्पिक विषय के रूप में चुना और वायलिन बजाना सीखा। एक छात्र के रूप में इन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया। ये भारतीय सिनेमा जगत में वी.के. मूर्ति के नाम से प्रसिद्ध हैं।
मैसूर के दीवान विश्वेश्वरैया द्वारा स्थापित ‘बेंगलुरु इंस्टीट्यूट’ से जुड़ने और वायलिन वादक की ट्रेनिंग ने  फिल्मों में काम दिलाने में इनकी मदद की। इसके बाद इन्होंने पश्चिमी फ़िल्मों में प्रकाश और छाया के कलात्मक प्रयोग से प्रेरणा लेते हुए भारतीय फिल्मों में प्रयोग किए और एक स्वतंत्र कैमरामैन के रूप में इनकी पहली फ़िल्म 1952 में गुरुदत्त के साथ ‘जाल’ प्रदर्शित हुई।

साल 1959 में इन्होंने भारत की पहली सिनेमास्कोप फ़िल्म ‘काग़ज़ के फूल’ की शूटिंग की, इसके बाद इन्होंने 1960 की ‘चौदहवीं का चांद’ में रंगों के विभिन्न प्रयोगों का सफल प्रयास के बाद इनके 1962 की ‘साहिब बीवी और गुलाम’ प्रकाश के बहुप्रयोगों के साथ अद्वितीय सिद्ध हुई।  श्याम बैनेगल द्वारा निर्देशित व्यापक रूप से प्रशंसित टेलीविजन श्रृंखला ‘भारत एक खोज’ के ये प्रमुख छायाकार थे। गौरतलब है कि भारत एक खोज पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा लिखी पुस्तक है, जिसपर आधारित कार्यक्रम का निर्माण 1988 में दूरदर्शन के लिये किया गया।
इनको ‘काग़ज़ के फूल’ तथा ‘साहिब बीबी और गुलाम’ के लिए सर्वश्रेष्ठ सिनेमाटोग्राफ़र का दो फ़िल्म फ़ेयर पुरस्कार मिलने के बाद 2005 में इन्हें ‘आईफा लाइफ़ टाइम अचीवमेंट अवार्ड’ से सम्मानित किया गया। 2008 में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति महामहिम प्रतिभा पाटिल ने अपने कर कमलों से इन्हें प्रतिष्ठित सम्मान ‘दादा साहब फाल्के पुरस्कार’ से विभूषित किया। इस सफर पर चलते हुए बेंगलुरु स्थित उनके आवास में 7 अप्रैल 2014 को इनका प्राणांत हो गया।
वी.के. मूर्ति की जयंती पर पाठक मंच के कार्यक्रम इन्द्रधनुष की 806वीं कड़ी में मंच की सचिव शिवानी दत्ता की अध्यक्षता में यह जानकारी दी गई।
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