चिन्मय दत्ता, चाईबासा, झारखंड
चित्तरंजन दास का जन्म 5 नवम्बर 1870 को कोलकाता उच्च न्यायालय के प्रसिद्ध वकील भुबनमोहन दास के घर हुआ। 1890 में बी.ए. पास करने के बाद आइ.सी.एस. होने के लिए इंग्लैंड गए और 1892 में बैरिस्टर होकर स्वदेश लौटे फिर 1894 में कोलकाता उच्च न्यायालय में वकालत की।
वर्ष 1905 में उन्होंने स्वदेशी मंडल की स्थापना की और 1906 में कांग्रेस में प्रवेश किया। 1906 में शुरू हुए ‘वंदे मातरम्’ नामक अंग्रेजी पत्र के संस्थापक मंडल तथा संपादक मंडल दोनों के प्रमुख सदस्य रहे फिर 1914 में बांग्ला भाषा की साप्ताहिक ‘नारायण’ की शुरुआत की। इन्होंने महात्मा गांधी के सत्याग्रह का समर्थन किया और असहयोग आंदोलन में जिन विद्यार्थियों ने स्कूल कॉलेज छोड़ दिए थे उनके लिए इन्होंने ढाका में राष्ट्रीय विद्यालय की स्थापना की।
16 जून 1925 को इनका निधन हो गया, जिसके बाद भारत सरकार ने टिकट जारी कर इन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। अपने निधन से कुछ समय पहले इन्होंने अपनी सारी चल-अचल संपत्ति राष्ट्र के नाम समर्पित कर दी जिसके कारण ये देशबंधु कहलाए। जिस घर में ये रहते थे वहां चित्तरंजन दास राष्ट्रीय कैंसर संस्थान है। वहीं दार्जिलिंग वाला इनका निवास अब मातृ एवं शिशु संरक्षण केंद्र के रूप में राज्य सरकार द्वारा चलाया जा रहा है।
दिल्ली का प्रसिद्ध आवासीय क्षेत्र ‘चित्तरंजन पार्क’ का नाम देशबंधु चित्तरंजन दास के नाम पर रखा गया है और यहां बड़ी संख्या में बंगालियों का निवास है जो बंटवारे के बाद भारत आ गए थे। इनके नाम देश के विभिन्न स्थानों पर अनेक संस्थाओं का नाम रखा गया है जिनमें चित्तरंजन एवेन्यू, चित्तरंजन हाई स्कूल, चित्तरंजन कॉलेज, चित्तरंजन लोकोमोटिव वर्क्स, देशबंधु कॉलेज फॉर गर्ल्स और देशबंधु महाविद्यालय प्रमुख है।
देशबंधु चित्तरंजन दास के जन्म दिवस पर पाठक मंच के कार्यक्रम इन्द्रधनुष की 803वीं कड़ी में मंच की सचिव शिवानी दत्ता की अध्यक्षता में यह जानकारी दी गई।
व्यक्तित्व कॉलम में आपको इस बार किस व्यक्तित्व के बारे में जानना है, अपने विचार अवश्य व्यक्त करें हमारे द्वारा उस व्यक्तित्व के बारे में जानकारी देने का पूर्ण प्रयास किया जाएगा। धन्यवाद।