भारतीय क्रिकेट के पितामह रणजीत सिंह

चिन्मय दत्ता, चाईबासा, झारखंड।
10 सितम्बर 1872 को गुजरात के काठियावाड़ स्थित सदोदर में जन्मे नवानगर सियासत के जामनगर के महाराजा कुमार रणजीत सिंह को भारतीय क्रिकेट का पितामह कहा जाता है। अपनी बल्लेबाजी से इन्होंने क्रिकेट को नई शैली देकर इस खेल में क्रांति ला दी थी। 1883 में पहली बार स्कूल में क्रिकेट खेला फिर 1884 में टीम के कप्तान नामांकित हुए और 1888 तक कप्तान के प्रभारी रहे।
16 जुलाई 1896 को इन्होंने पहला टेस्ट मैच खेला। उस समय भारत में अंग्रेजों का शासन था और इनका इंग्लैंड टीम में चयन हुआ था। ये इंग्लिश टीम में शामिल होने वाले एशियाई मूल के पहले क्रिकेटर थे जिन्हें अपनी क्रिकेट टीम में खिलाड़ी के रूप में शामिल करने के लिए अंग्रेज आपस में भिड़ गए थे। टेस्ट क्रिकेट के इतिहास में एक ही दिन में दो शतक मारने का उनका रिकॉर्ड अब तक कोई नहीं तोड़ पाया है। ये 1931 से 1933 तक नरेंद्र मंडल के चांसलर भी रहे थे।
नवानगर के शासक के रूप में पहली बार रेल लाइन बिछाने, सड़कें बनवाने, आधुनिक सुविधाओं वाला बंदरगाह बनवाने के अलावा राजधानी को विकसित करवाने का श्रेय इन्हें दिया जाता है।
2 अप्रैल 1933 को जामनगर महल में इनका प्राणांत हो गया। इसके बाद इनके सम्मान में भारतीय क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड ने 1934 में भारत के विभिन्न शहरों और क्षेत्रों के बीच खेली जा रही क्रिकेट सीरीज़ को ‘रणजी ट्रॉफी’ का नाम दिया जिसे अब भारत के राज्यों के बीच प्रथम श्रेणी क्रिकेट प्रतियोगिता के रूप में मान्यता प्राप्त है।
रणजीत सिंह की जयंती पर पाठक मंच के कार्यक्रम इन्द्रधनुष की 795वीं कड़ी में मंच की सचिव शिवानी दत्ता की अध्यक्षता में यह जानकारी दी गई।
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