अरे ओ
उगते सूरज की
पूजा करने वाले।
अंधे हो गए हो क्या ?
दिखाई नहीं देता क्या तुम्हे
जितना ही यह आकाश में
यह सूरज ऊपर उठ रहा है
उसका जीवन उतना ही
शेष हो रहा है।
तुमने मौत की अराधना
आरम्भ कर दी है।
मैं तो डूबते सूरज पर
प्राणपल से न्योछावर हूं।
वह स्वयं समुद्र में समा जाएगा,
पर अपनी मृत्यु की कोख से
कल नये को जन्मा जाएगा।
उस अंकुरित होते
उषा की झलक पाकर
मैं प्रणाम कर रहा हू
इस डूबते सूरज को
तुम धोखे में हो
वह आज के लिए था
कल वह नहीं होगा।
कल कोई दूसरा आएगा,
जो जीवन को लाएगा
इसलिए हे सूर्योदयसेवी।
हर रोज सूर्यास्त को नमन कर।
मृत्यु को त्याग कर
जीवन को वरण कर।
उक्त कविता स्वर्गीय विनोदा नंद झा के द्वारा लिखित कविता संग्रह “इन्द्रधनुष” पुस्तक से ली गई है।