देवकीनन्दन खत्री की चन्द्रकान्ता के लिए लाखों पाठकों ने सीखी हिंदी

     चिन्मय दत्ता।
भारत के सर्वाधिक लोकप्रिय लेखक देवकीनन्दन खत्री हिंदी साहित्य के पहले तिलिस्मी लेखक के रूप में प्रसिद्ध हैं। इनके पिता लाला ईश्वरदास पंजाब के निवासी थे लेकिन इनका जन्म 18 जून 1861 को बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के पूसा में अपने ननिहाल में हुआ।
इन्हें बचपन से भ्रमण में रुचि थी। एक बार काशी नरेश ईश्वरीप्रसाद नारायण सिंह से चकिया और नौगढ़ के जंगलों का ठेका इन्हें मिल गया, जिस दौरान बीहड़ जंगलों, सुनसान खंडहरों और पहाड़ियों के बीच घूमने का मौका मिला। यहां प्राचीन वीरान ऐतिहासिक इमारतों और खंडहरों को देखकर इनके मन में तिलिस्मी कहानी लेखन की प्रेरणा मिली। इन्होंने 1888 से 1892 के बीच अपना पहला उपन्यास ‘चन्द्रकान्ता’ लिखा। यह उपन्यास इतना रोचक है कि इसे पढ़ने के लिए लाखों पाठकों ने हिंदी सीखी।
देवकीनंदन खत्री ने उपन्यासों में पात्रों के नाम अपनी मित्रमंडली से चुनकर रखे और जो खत्री की रचनाओं के साथ अमर हो गये। अपने उपन्यासों की लोकप्रियता के कारण इन्होंने ‘लहरी प्रेस’ के नाम से निजी प्रेस की स्थापना की जहां से हिंदी मासिक पत्रिका ‘सुदर्शन’ प्रकाशित होती रही। इन्होंने अपनी आखिरी उपन्यास भूतनाथ 1907 से लिखना शुरू किया था, लेकिन पूरा होने से पहले ही 1 अगस्त 1913 को काशी में इनका प्राणांत हो गया। बाद में इस उपन्यास को इनके पुत्र दुर्गाप्रसाद खत्री ने लिख कर पूरा किया।
चन्द्रकान्ता के लेखन के 100 साल बाद 1994 से 1996 तक निर्माता नीरजा गुलेरी का हिंदी धारावाहिक चन्द्रकान्ता दूरदर्शन नेशनल पर प्रसारित हुआ।   देवकीनन्दन खत्री की जयंती पर पाठक मंच के कार्यक्रम इन्द्रधनुष की 783वीं कड़ी में मंच की सचिव शिवानी दत्ता की अध्यक्षता में यह जानकारी दी गई।
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