मीमांसा डेस्क, नई दिल्ली।
देश में आपदा प्रबंधन को और मजबूती प्रदान करते हुए केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने मंगलवार को 8000 करोड़ रुपये से अधिक राशि की तीन प्रमुख योजनाओं की घोषणा की, जिनमें, राज्यों में अग्निशमन सेवा के विस्तार और आधुनिकीकरण के लिए 5,000 करोड़ रुपये की परियोजना, सर्वाधिक जनसंख्या वाले सात महानगरों – मुंबई, चेन्नई, कोलकाता बेंगलुरु, हैदराबाद, अहमदाबाद और पुणे – में बाढ़ के खतरे को कम करने के लिए के लिए 2,500 करोड़ रुपये की परियोजना और (3) भू-स्खलन शमन के लिए 17 राज्यों सहित केंद्रशासित प्रदेशों में 825 करोड़ रुपये की राष्ट्रीय भू-स्खलन जोखिम शमन परियोजना शामिल हैं।
नई दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित आपदा प्रबंधन मंत्रियों की बैठक में बतौर अध्यक्ष केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कहा कि इन तीन प्रमुख योजनाओं के कार्यान्वयन से जहाँ आपदा जोखिम को कम करने में मजबूती मिलेगी, वहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आपदा प्रतिरोधी भारत के संकल्प को साकार स्वरूप मिलेगा।
बैठक के दौरान अमित शाह ने कहा कि, ‘2005-06 से 2013-14 तक के 9 साल और 2014-15 से 2022-23 तक के 9 सालों की तुलना करें तो, एसडीआरएफ को पहले 35,858 करोड़, रूपए जारी किए गए थे, जो लगभग तीन गुणा बढ़कर 1,04,704 करोड़ रूपए हो गया है। इसके अलावा एनडीआरएफ से जारी होने वाली राशि 25,000 करोड़ रूपए से बढ़कर, लगभग तीन गुणा वृद्धि के साथ 77,000 करोड़ रूपए हो गया है।’
शाह का मानना है कि प्राकृतिक आपदा की स्थिति में राज्यों को किसानों को अधिक मुआवजा देने के लिए अपने बजटीय प्रावधान को बढ़ाना चाहिए। साथ ही, मॉडल अग्नि विधेयक, केंद्र सरकार द्वारा आपदा रोकथाम, आँधी-तूफान और बिजली गिरने और शीत लहर की रोकथाम के लिए बनाई गई नीतियों को पूरे देश में लागू किया जाना चाहिए।
कुछ साल पहले तक आपदा को लेकर सरकार का दृष्टिकोण राहत-केंद्रित और रिएक्शनरी था, लेकिन पिछले 9 वर्षों में अर्ली वॉर्निंग सिस्टम, प्रिवेंशन, मिटिगेशन और पूर्वतैयारी-आधारित आपदा प्रबंधन की नीतियों को जमीन पर उतारने का काम किया गया है। शाह की नीतियों के तहत 350 उच्च-जोखिम आपदा संभावित ज़िलों में लगभग एक लाख युवा वॉलंटियर को नियुक्त करने का नतीजा भी सकारात्मक है।
पिछले 9 वर्षों में आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में केंद्र और राज्य के समन्वय से काफी उपलब्धियाँ प्राप्त हुई हैं। लेकिन शाह का स्पष्ट मानना है कि, जिस तरह आपदाओं का स्वरूप बदला है, उनकी फ्रीक्वेंसी और तीव्रता बढ़ी है, ठीक उसी तरह तैयारियों को अधिक पैना और व्यापक करना होगा ताकि एक भी व्यक्ति की जान आपदा के कारण ना जाए।