चिन्मय दत्ता, चाईबासा, झारखंड
एशिया के प्रथम नोबेल पुरस्कार से सम्मानित व्यक्ति रबीन्द्रनाथ ठाकुर का जन्म 7 मई 1861 को कोलकाता स्थित जोड़ासाँको ठाकुरबाड़ी में हुआ। पिता देवेन्द्रनाथ ठाकुर और माता शारदा देवी के संरक्षण में इनकी प्रारंभिक शिक्षा संत जेवियर्स स्कूल में हुई। इनका विवाह 1883 में मृणालिनी देवी से हुआ।
इनका परिवार बंगाल पुनर्जागरण के समय अग्रणी था जिन्होंने कई साहित्यिक पत्रिकाओं का प्रकाशन किया। इसलिये यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी की बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नई जान फूँकने वाले युगदृष्टा रबीन्द्रनाथ में साहित्यिक अंकुरण विरासत से हुई। संपूर्ण विश्व में ये एकमात्र कवि हैं जिनकी रचनाएँ दो राष्ट्रों का राष्ट्रगान बना — भारत का राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ और बांग्लादेश का राष्ट्रगान ‘आमार सोनार बांग्ला’।
इन्होंने पहली कविता आठ वर्ष की आयु में लिखी थे और सोलह वर्ष की आयु में इनकी प्रथम लघु कथा प्रकाशित हुई। इनकी रचनाएं बांग्ला साहित्य में नई ऊर्जा लेकर ही नहीं आई बल्कि ये एशिया के प्रथम नोबेल पुरस्कार से सम्मानित व्यक्ति बने जिन्हें 1913 में इनकी काव्य रचना ‘गीतांजलि’ के लिए साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला था।
7 अगस्त 1941 को ब्रह्मलीन हुए रबीन्द्रनाथ महान रचनाधर्मी ही नहीं बल्कि पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने पूर्वी और पश्चिमी दुनिया के बीच सेतु बनने का कार्य किया जो संपूर्ण विश्व के साहित्य, कला और संगीत के ऐसे महान प्रकाश स्तंभ है जो अनंतकाल तक प्रकाशमान रहेगा।
रबीन्द्रनाथ ठाकुर की जयंती पर पाठक मंच के कार्यक्रम इन्द्रधनुष की 777वीं कड़ी में मंच के सचिव शिवानी दत्ता की अध्यक्षता में यह जानकारी दी गई।
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