राजा हरिश्चन्द्र के निर्माण के साथ दादासाहब ने रखी भारतीय फिल्म की नींव

चिन्मय दत्ता, चाईबासा, झारखंड
भारतीय फिल्म निर्माता एवं लेखक के रूप में प्रसिद्ध दादासाहब फालके का वास्तविक नाम धुंडीराज गोविंद फालके था। इनका जन्म ब्रिटिश भारत के अंतर्गत बॉम्बे प्रेसिडेंसी के त्र्यंबकेश्वर में 30 अप्रैल 1870 को हुआ था। दादा साहब सर जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट से प्रशिक्षित सृजनशील कलाकार होने के साथ शौकिया जादूगर थे।
25 दिसम्बर 1891 को क्रिसमस के अवसर पर बम्बई में अमेरिका इंडिया थिएटर में एक विदेशी मूक चलचित्र ‘लाइफ ऑफ क्राइस्ट’ दिखाया जा रहा था, जिसे दादासाहब भी देख रहे थे।  यहीं से इनके ह्रदय में चलचित्र निर्माण का अंकुर फूट पड़ा और इन्होंने फिल्मकार बनने का निर्णय लिया। दादा साहब ने अपना स्टूडियो बनाया और ‘फालके फिल्म’ के नाम से अपनी संस्था बनाई। इसके बाद प्रथम भारतीय फिल्म बनाने का असंभव कार्य करने वाले यह पहले व्यक्ति बने। इन्होंने ‘राजा हरिश्चंद्र’ बनाई जिसे 21 अप्रैल 1913 को ओलंपिया सिनेमा हॉल में रिलीज किया गया, जो जबरदस्त हिट रही। इसके निर्माता, लेखक, कैमरामैन इत्यादि दादासाहब ही थे। इसमें दादासाहब स्वयं हरिश्चंद्र की भूमिका में रहे और रोहिताश्व की भूमिका इनके सात वर्षीय पुत्र भालचंद्र फालके ने निभाई।
1937 में इन्होंने अपनी पहली और अंतिम सवाक फिल्म ‘गंगावतरण’ बनाई जिसके बाद 16 फरवरी 1944 को नासिक में इनका प्राणांत हो गया। दादा साहब के जन्म शताब्दी वर्ष 1969 से भारत सरकार द्वारा इनकी स्मृति में प्रति वर्ष ‘दादासाहब फालके पुरस्कार’ प्रदान करने के अतिरिक्त 1971 में भारतीय डाक ने इनके नाम डाक टिकट जारी किया। ‘दादासाहब फालके अकेडमी’ द्वारा और तीन पुरस्कार भी दिए जाते हैं, जो हैं — फालके रत्न अवॉर्ड, फालके कल्पतरू अवार्ड और दादासाहब फालके अकेडमी अवॉर्ड हैं।
दादासाहब फालके की जयंती पर पाठक मंच के कार्यक्रम इन्दधनुष की 776वीं कड़ी में मंच की सचिव शिवानी दत्ता की अध्यक्षता में यह जानकारी दी गई।
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