भारत में महिला कवि सम्मेलनों की नींव रखने वाली कवियित्री महादेवी वर्मा

चिन्मय दत्ता, चाईबासा, झारखंड
आधुनिक हिंदी की सशक्त कवियत्री महादेवी वर्मा का जन्म 26 मार्च 1907 को उत्तर प्रदेश के फर्रुख़ाबाद में हुआ था। इनके परिवार में सात पीढ़ियों के बाद पुत्री का जन्म हुआ जिससे इनके पिता गोविंद प्रसाद वर्मा हर्ष से झूम उठे और इन्हें घर की देवी मानते हुए इनका नाम महादेवी रखा।  धार्मिक प्रवृत्ति की माँ हेमरानी देवी संस्कृत और हिंदी की ज्ञाता थी, इसलिये कविता लिखने और साहित्य में रुचि लेने की प्रेरणा माँ से मिली और सात वर्ष की अवस्था से ही इन्होंने कविता लिखना शुरू कर दिया।
इनकी शिक्षा इंदौर स्थित मिशन स्कूल से प्रारंभ हुई। 1921 में आठवीं कक्षा में प्रांत भर में प्रथम स्थान प्राप्त करने के बाद 1925 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करते समय यह एक सफल कवियत्री के रूप में प्रसिद्ध हो चुकी थी। इन्होंने भारत को परतंत्र और स्वतंत्र दोनों रूपों में देखा। 1932 में प्रयाग विश्वविद्यालय से एम. ए. किया और प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्य और कुलपति भी रही।  इस दौरान 1932 में महिलाओं की प्रमुख पत्रिका ‘चाँद’ का कार्यभार संभाला फिर 1955 में इलाहाबाद में साहित्यकार संसद की स्थापना की और भारत में महिला कवि सम्मेलनों की नींव रखी।
1936 में नैनीताल से 25 किलोमीटर दूर रामगढ़ कस्बे के उमागढ़ नामक गांव में इन्होंने एक बंगला बनवाया था जो अब महादेवी साहित्यिक संग्रहालय के नाम से जाना जाता है। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला से इनकी अत्यधिक निकटता थी। उनकी कलाई में ये लगभग चालीस वर्षों तक राखी बाँधती रही। निराला ने इन्हें ‘हिंदी के विशाल मंदिर की सरस्वती’ कहा है।
भारतीय साहित्य में अतुलनीय योगदान के लिए 1956 में पद्म भूषण, 1979 में साहित्य अकादमी फेलोशिप और 1982 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से विभूषित हुई और फिर इलाहाबाद में 11 सितम्बर 1987 को इनका प्राणांत हो गया।
महादेवी वर्मा की जयंती पर पाठक मंच के कार्यक्रम इन्द्रधनुष की 771वीं कड़ी में मंच की सचिव शिवानी दत्ता की अध्यक्षता में यह जानकारी दी गई।
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