बांग्ला की प्रसिद्ध बाल साहित्यकार रही लीला मजूमदार

चिन्मय दत्ता, चाईबासा, झारखंड
बांग्ला की प्रसिद्ध बाल साहित्यकार एवं शिक्षिका लीला मजूमदार का जन्म शिलांग में प्रमदा रंजन रॉय के घर 26 फरवरी 1908 को हुआ। माँ सुरमा देवी ने प्रारंभिक शिक्षक के लिए इनका नामांकन शिलांग स्थित लोरेटो कॉन्वेंट स्कूल में कराया। अंततः कोलकाता विश्वविद्यालय में मास्टर ऑफ आर्ट्स में प्रथम स्थान पर रही।
1931 में दार्जिलिंग के महारानी गर्ल्स स्कूल में शिक्षिका बनीं। इन्होंने शांतिनिकेतन और कोलकाता स्थित आशुतोष कॉलेज में शिक्षिका रहने के साथ ऑल इंडिया रेडियो के निर्माता के रूप में भी कार्य किया। इन्होंने ऐसी कहानियां लिखी जो लड़के और लड़कियां दोनों को आकर्षित करती थीं। इनके ताऊ उपेंद्र किशोर रॉय चौधरी ने 1913 में पत्रिका ‘संदेश’ की स्थापना की थी जिसमें 1922 में इनकी पहली कहानी ‘लक्खी छेले’ प्रकाशित हुई जिसे इन्होंने स्वयं चित्रित किया था।
1933 में सुधीर मजूमदार से विवाह होने के बाद इनकी साहित्यिक जीवन को नई दिशा मिली। इसके बाद प्रकाशित हुई 1939 में इनकी पहली पुस्तक ‘बोद्दी नाथेर बाड़ी’ 1939 में फिर 1948 में प्रकाशित ‘तुपूरे’ ने काफी प्रसिद्धि दिलाई। इन्होंने 125 से अधिक पुस्तकें लिखीं जिनमें लघु कथा संग्रह और अनुवादित पुस्तकों का विशेष स्थान है।
इनकी अपनी पुस्तक ‘होल्दे पाखिर पालोक’ को बाल साहित्य के लिए पश्चिम बंगाल राज्य पुरस्कार से विभूषित किया गया। इसके बाद विश्व भारती विश्वविद्यालय द्वारा देशिकोत्तमा से सम्मानित किया।  ‘बक बध पाला’ के लिए संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार इन्होंने अपने नाम करने के बाद ‘आर कोनोखाने’ के लिए रबींद्र पुरस्कार, सुरेश स्मृति पुरस्कार, विद्यासागर पुरस्कार, भुवनेश्वरी पदक और आनंद पुरस्कार भी अपने नाम किया। कोलकाता में 5 अप्रैल 2007 को इनका प्राणांत हो गया।
लीला मजूमदार की जयंती पर पाठक मंच के कार्यक्रम इन्द्रधनुष की 767वीं कड़ी में मंच की सचिव शिवानी दत्ता की अध्यक्षता में यह जानकारी दी गई।
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