प्राण को जब अपनी पोती से मिला सबसे कीमती उपहार

चिन्मय दत्ता, चाईबासा, झारखंड
शेर खान आज का काम कल पर नहीं छोड़ता…सन 1973 में बनी फिल्म जंजीर में यह प्राण का मशहूर संवाद है। इसी फिल्म में एक गीत, यारी है ईमान मेरा…में इनकी खास अदाकारी के कारण आज भी सदाबहार है। प्रकाश मेहरा को इस फिल्म के लिए अमिताभ बच्चन का नाम प्राण ने ही सुझाया था जिसने अमिताभ के कैरियर को नई दिशा दी।

प्राण कृष्ण सिकंद का जन्म 12 फरवरी 1920 को पुरानी दिल्ली स्थित बल्लीमारान में लाला केवल कृष्णन सिकंद के घर जन्म हुआ।  एक बार पान की दुकान पर प्राण की मुलाकात पटकथा लेखक मोहम्मद वली से हुई तो वली को लगा कि उनकी कहानी का चरित्र मिल गया और 1940 के पंजाबी फिल्म ‘यमला जट’ से प्राण का फिल्मों में पदार्पण हो गया।

यह फिल्म सुपरहिट रही फिर 1942 में निर्माता दलसुख पांचोली ने अपनी हिंदी फिल्म खानदान में प्राण को अवसर दिया।  इसके बाद इन्होंने नायक और खलनायक की अतिरिक्त चरित्र अभिनेता की भूमिकाएं निभाई।

इन्होंने 1968 में ‘उपकार’ के लिए 1970 में ‘आँसू बन गए फूल’ और 1973 में ‘बेईमान’ के लिए फिल्म फेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता अवार्ड अपने नाम करने के बाद 1997 में फिल्म फेयर लाइफ टाइम एचीवमेंट अवार्ड अपने नाम किए।  इतनी ही नहीं 2001 में भारत सरकार ने इन्हें पद्म भूषण से विभूषित किया और इनको सबसे कीमती उपहार सितम्बर 2004 में मिला जब उनकी पोती ने बेटे को जन्म दिया और उसका नाम रखा — अमर प्राण।

इन्होंने 2013 में दादा साहेब फाल्के सम्मान अपने नाम किए और इसी वर्ष 12 जुलाई को महानायक प्राण का प्राणांत हो गया।      प्राण कृष्ण सिकंद की जयंती पर पाठक मंच के कार्यक्रम इन्द्रधनुष की 765वीं कड़ी में मंच की सचिव शिवानी दत्ता की अध्यक्षता में यह जानकारी दी गई।

व्यक्तित्व कॉलम में आपको इस बार किस व्यक्तित्व के बारे में जानना है, अपने विचार अवश्य व्यक्त करें। हमारे द्वारा उस व्यक्तित्व के बारे में जानकारी देने का पूर्ण प्रयास किया जायेगा। धन्यवाद।  

 

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