अमित तिवारी।
क्या करूं, अब तो जीवन में कोई विकल्प नहीं बचा है? अब तो बस हार मान लेना ही एक रास्ता है।
जिंदगी ने कोई विकल्प ही नहीं छोड़ा है। अब तो बस…
ये या इस तरह की बहुत सी बातें, आपने सुनी होंगी।
जीवन में कई लोग ऐसे मिल जाते हैं, जो विकल्पहीनता की बात करते हैं।
उन्हें देखकर कई बार हमें लगता भी यही है कि शायद उसके पास वास्तव में कोई विकल्प नहीं बचा होगा।
क्या सच में ऐसा है?
यदि वास्तव में विकल्पहीनता जैसी स्थिति लग रही हो, तो क्या करना उचित होगा?
आज अपने इस स्तंभ में हम इसी प्रश्न के समाधान तक पहुंचने का प्रयास करेंगे।
सबसे पहले तो प्रश्न को थोड़ा पीछे ले जाकर यह पूछते हैं कि क्या वास्तव में विकल्पहीनता जैसा कुछ हो सकता है?
जैसे ही हम इस प्रश्न के उत्तर तक पहुंचेंगे, बाकी उत्तर स्वत: ही मिल जाएंगे।
वैसे तो सदैव की भांति इस प्रश्न का भी एक शब्द में उत्तर होगा, ‘नहीं’। विकल्पहीनता जैसा कुछ होता ही नहीं है।
अब आपका ध्यान तुरंत ऊपर के वाक्यों पर गया होगा, जहां कोई स्वयं अपनी विकल्पहीनता का रोना रो रहा था।
इस प्रश्न में भी समाधान इसके अंदर ही छिपा है।
जब कोई कहता है, ‘क्या करूं? अब तो जीवन में कोई विकल्प नहीं बचा है। अब तो बस हार मान लेना ही एक रास्ता है।‘
क्या वास्तव में उसका यह वाक्य विकल्पहीनता का परिचायक है?
कदापि नहीं।
उसने स्वयं ही तो एक विकल्प बताया है, हार मान लेने का।
तब फिर वह विकल्पहीन कैसे हुआ?
ठहरिए।
हम आपके साथ कोई शब्दों का खेल नहीं कर रहे हैं।
इस बात को एक आसान उदाहरण से समझते हैं।
हम सबने कभी न कभी किसी बहुविकल्पीय उत्तर वाली परीक्षा का सामना अवश्य किया होगा।
इसमें हर प्रश्न के चार विकल्प दिए रहते हैं और उनमें से कोई एक सही होता है।
कई बार उसमें चौथा विकल्प होता है, ‘इनमें से कोई नहीं।‘
अब यदि प्रश्न के साथ लिखे तीनों विकल्प सही न हों और चौथे विकल्प पर लिखा हो, ‘इनमें से कोई नहीं।‘
तब आपको अंक पाने के लिए क्या करना पड़ता है?
क्या आप उस परिस्थिति को विकल्पहीन मानकर प्रश्न छोड़ देते हैं?
या
‘इनमें से कोई नहीं’ का विकल्प चुनते हैं?
निश्चित तौर पर प्रश्न के लिए अंक उसे नहीं मिलेगा, जो उस परिस्थिति को विकल्पहीनता मान लेगा, बल्कि अंक वह प्राप्त करेगा, जो ‘इनमें से कोई नहीं’ का विकल्प चुनेगा।
अब एक बात और बताइए।
किसी प्रश्न के उत्तर में जब आप ‘इनमें से कोई नहीं’ का विकल्प चुनते हैं, तो उसका अर्थ क्या होता है?
उसका यह अर्थ नहीं होता है कि प्रश्न का कोई उत्तर है ही नहीं, उसका अर्थ बस इतना होता है कि सामने जो विकल्प हैं, उनमें से कोई उसका उत्तर नहीं है।
लेकिन, उत्तर तो उस प्रश्न का भी कुछ न कुछ होगा ही।
बस यही जीवन में भी होता है।
असल में हम प्रतियोगी परीक्षा के प्रश्न पत्र में तो ‘इनमें से कोई नहीं’ का विकल्प चुनकर ही पास हो जाते हैं, लेकिन जीवन इससे थोड़ा सा आगे बढ़ने का नाम है।
जीवन में जब आपको पता लग जाए कि आपके सामने जितने भी विकल्प हैं, उनमें से किसी से भी आपके जीवन के प्रश्न का समाधान नहीं मिल रहा है, तो आपको पूरी दृढ़ता के साथ उन सभी विकल्पों को खारिज करके, सही उत्तर की खोज प्रारंभ कर देनी चाहिए।
वस्तुत: विकल्पहीनता परिस्थिति नहीं, केवल मानसिकता है।
किसी भी परिस्थिति से बाहर निकलने का विकल्प नहीं मिल पाने का यह अर्थ नहीं है कि उससे बाहर निकलने का कोई विकल्प है ही नहीं।
किसी ताले की चाबी नहीं मिलने का यह अर्थ नहीं है कि उसकी कोई चाबी है ही नहीं।
हमने अपने इस स्तंभ के पहले आलेख में यही कहा था कि हर प्रश्न का समाधान है।
यह भी उसी बात का विस्तार है कि हर समस्या से बाहर आने का विकल्प होता है।
हमें विकल्प नहीं मिल पाया है, तो इसका केवल यही अर्थ है कि हमें विकल्प तक पहुंचने के लिए अतिरिक्त प्रयास करना होगा।
परिस्थितियां कभी विकल्पहीनता के साथ जन्म नहीं लेती हैं। आवश्यकता बस सही विकल्प तक पहुंचने की है।
हमें विकल्पहीनता की मानसिकता से बाहर निकलना होगा। असल में हम ‘इनमें से कोई नहीं’ को ही अंतिम विकल्प मानकर हार जाते हैं।
हमें समझना होगा कि हर ‘इनमें से कोई नहीं’ के पीछे छिपा हुआ संदेश यह है कि अब आपको उपलब्ध विकल्पों को छोड़कर अन्य धारा में सोचना होगा।
प्रयास करेंगे, तो समाधान अवश्य मिलेगा।
ॐ
(समाधान है… कॉलम में ऐसे ही अनुत्तरित लगने वाले प्रश्नों के समाधान पाने का प्रयास होगा। प्रश्न आप भी पूछ सकते हैं। प्रश्न जीवन के किसी भी पक्ष से संबंधित हो सकता है। प्रश्न भाग्य-कर्म के लेखा-जोखा का हो या जीवन के सहज-गूढ़ संबंधों का, सबका समाधान होगा। बहुधा विषय गूढ़ अध्यात्म की झलक लिए भी हो सकते हैं, तो कई बार कुछ ऐसी सहज बात भी, जिसे पढ़कर अनुभव हो कि यह तो कब से आपकी आंखों के सामने ही था। प्रश्न पूछते रहिए… क्योंकि हर प्रश्न का समाधान है।)