नई दिल्ली स्थित राजीव गांधी कैंसर इंस्टीट्यूट एंड रिसर्च सेंटर (आरजीसीआईआरसी) के कैंसर विशेषज्ञों ने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन, कैथल द्वारा आयोजित डॉक्टरों के सम्मेलन में कैंसर के विभिन्न प्रकार के इलाज की नई टेक्नोलॉजी और थेरेपी पर जानकारी साझा की। आरजीसीआईआरसी के मेडिकल ओंकोलॉजी कंसल्टेंट डॉ. पंकज गोयल ने स्तन कैंसर के एडवांस्ड स्टेज के इलाज से जुड़े नए तथ्यों पर बात की, जबकि ऑर्थोपेडिक ओंकोलॉजी कंसल्टेंट डॉ. हिमांशु रोहेला ने सारकोमा यानी हड्डियों के कैंसर के नए इलाज की जानकारी साझा की। इन नई पद्धतियों ने कैंसर के इलाज की दिशा में उम्मीद बढ़ाई है। इनसे एडवांस्ड स्टेज के कैंसर के मामलों में भी इलाज की उम्मीद बढ़ी है। इन थेरेपी से न केवल कैंसर का इलाज आसान हुआ है, बल्कि मरीज ठीक भी जल्दी होता है और सर्वाइवल रेट भी बढ़ जाता है।
डॉ. पंकज गोयल ने बताया कि टारगेटेड थेरेपी स्तन कैंसर के इलाज की दिशा में आशीर्वाद की तरह सामने आई हैं, जिनमें स्तन कैंसर के स्टेज-4 में भी सफलतापूर्वक इलाज की संभावना रहती है। इन थेरेपी को इंजेक्शन या टेबलेट के माध्यम से दिया जाता है। पहले की इलाज की पद्धतियां ब्रेन मेटास्टेसस (वह स्थिति जिसमें कैंसर की कोशिकाएं मूल स्थान से फैलते हुए दिमाग तक पहुंच जाती हैं) के मामले में बहुत कम कारगर थीं। अब ऐसे बहुत से मामलों में सर्जरी या रेडिएशन की जरूरत नहीं रहती है। नई थेरेपी से दिमाग तक कैंसर के फैलने की आशंका भी बहुत कम हो जाती है।
आर्थोपेडिक ओंकोलॉजी कंसल्टेंट डॉ. हिमांशु रोहेला ने इस दौरान आरजीसीआईआरसी में इस्तेमाल होने वाले इलाज के तरीकों को पेश किया। इन तरीकों में कैंसर प्रभावित अंगों को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचाए बिना ही इलाज करना संभव होता है। इनमें मेगाप्रोस्थेसिस, टोटल फीमर रिप्लेसमेंट और पेल्विक बोन रिप्लेसमेंट शामिल हैं। उन्होंने लिक्विड नाइट्रोजन थेरेपी का भी विशेष तौर पर उल्लेख किया। यह एक सुपर स्पेशियलिटी थेरेपी है। देश में इसकी उपलब्धता बहुत कम है, लेकिन हड्डियों के कैंसर के मामले में इसके नतीजे बहुत उत्साहजनक मिले हैं।
इस थेरेपी के तहत ट्यूमर बोन को हटा दिया जाता है और उसे लिक्विड नाइट्रोजन में डुबोया जाता है। लिक्विड नाइट्रोजन ट्यूमर को खत्म करता है, लेकिन हड्डियों को नुकसान नहीं पहुंचाता है। यह थेरेपी सस्ती भी होती है।
सारकोमा या हड्डियों का कैंसर बहुत आम नहीं है। हालांकि कुछ लक्षणों की अनदेखी नहीं करनी चाहिए, जैसे बिना गिरे हड्डियों में फ्रैक्चर हो जाना और बिना दर्द के अंगों में सूजन आ जाना।
डॉ. रोहेला ने आगे बताया कि आमतौर पर सारकोमा 5 से 25 साल की उम्र में होता है।
वास्तव में इन नई पद्धतियों ने कैंसर के इलाज की दिशा में उम्मीद बढ़ाई है। इनसे एडवांस्ड स्टेज के कैंसर के मामलों में भी इलाज की उम्मीद बढ़ी है। इन थेरेपी से न केवल कैंसर का इलाज आसान हुआ है, बल्कि मरीज ठीक भी जल्दी होता है और सर्वाइवल रेट भी बढ़ जाता है।