राजा लक्ष्मण सिंह को अनुवादक के रूप में सर्वाधिक सफलता मिली

चिन्मय दत्ता।

उत्तर प्रदेश के आगरा स्थित वजीरपुरा में 9 अक्टूबर 1826 को राजा लक्ष्मण सिंह का जन्म हुआ। इनकी ख्याति अनुवादक के रूप में है। यह पश्चिमी उत्तर प्रदेश लेफ्टिनेंट गवर्नर के कार्यालय में अनुवादक नियुक्त हुए और कलकत्ता विश्वविद्यालय के ‘फेलो’ और रायल एशियाटिक सोसायटी के सदस्य रहे।

1857 में अंग्रेजों की सहायता करने पर इन्हें, डिप्टी कलेक्टर का पद और राजा की उपाधि मिली। 1861 में आगरा से ‘प्रजा हितैषी’ नामक पत्र निकालने के बाद इन्होंने 1863 में महाकवि कालिदास की अमर कृति ‘अभिज्ञान शाकुंतलम्’ का हिंदी अनुवाद ‘शकुंतला नाटक’ के रूप में तैयार कर प्रकाशित किया। इसमें प्रस्तुत हिंदी की खड़ी बोली ने आश्चर्यचकित कर दिया। राजा शिवप्रसाद सितारेहिंद ने अपनी ‘गुटका’ में इस रचना को स्थान दिया। तत्कालीन प्रसिद्ध हिंदी प्रेमी फ्रेडरिक पिन्काट इनसे अत्यंत प्रभावित होकर 1875 में इस रचना को इंग्लैंड में प्रकाशित कराया। इस प्रसिद्ध रचना को इंडियन सिविल सर्विस की परीक्षा में पाठ्य पुस्तक के रूप में स्वीकृत किया गया।

इससे प्रोत्साहित होकर इन्होंने 1877 में कालिदास के ‘रघुवंश’ महाकाव्य का हिंदी अनुवाद किया। अनुवादक के रूप में इन्हें सर्वाधिक सफलता मिली। इनके अनुवादों की सफलता का रहस्य भाषा की सरलता और भावव्यंजना की स्पष्टता है जिससे तत्कालीन प्रसिद्ध विद्वान इनके अनुवाद से अत्यंत प्रभावित हुए।  14 जुलाई 1896 को इनका प्राणांत हो गया।

राजा लक्ष्मण सिंह की जयंती पर पाठक मंच के कार्यक्रम इन्द्रधनुष की 746वीं कड़ी में मंच की सचिव शिवानी दत्ता की अध्यक्षता में यह जानकारी दी गई।

 

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