चिन्मय दत्ता, चाईबासा, झारखंड
महान उपन्यासकारों में प्रेमचंद का नाम सारे संसार में बेहद सम्मान के साथ लिया जाता है। इनकी आंतरिक दृष्टि गजब की चमत्कारिक थी। इंसान के मनोभावों को समझ कर यह उन्हें अनुपम दक्षता के साथ क्रमबद्ध करके हैरान कर देते थे। इनके उपन्यासों व कहानियों को देश-विदेश के पाठ्यक्रमों में शामिल किया जाता है।
प्रेमचंद्र का जन्म उत्तर प्रदेश स्थित वाराणसी जिले के लमही गांव में 31 जुलाई 1880 को अजायब लाल के घर हुआ था। इनका नाम धनपत राय रखा गया। आठ वर्ष की उम्र में इनकी मां आनंदी देवी का निधन हो गया और सोलहवें वर्ष से ही इन्होंने घरेलू जिम्मेदारियां उठानी शुरू कर दी थी।
1908 में प्रकाशित इनका प्रथम पांच कहानियों का संग्रह सोजे वतन (वतन का दुख दर्द) को ब्रिटिश सरकार ने जब्त कर उसकी तमाम प्रतियां जला दी और बिना आज्ञा न लिखने का बंधन लगा दिया गया। इस समय तक यह नवाब राय के नाम से लिखा करते थे। यही कारण है कि 1910 में छद्म नाम प्रेमचंद से लिखना आरंभ किया फिर यही नाम संसार के सामने आया।राष्ट्रप्रेम व देशभक्ति का जज्बा इनके लेखन में उतर आया था। इन्होंने भारत की आत्मा का न केवल दर्शन किया बल्कि उसे लेखन में भी उतार लिया था।
इन्हें ‘मर्यादा’ पत्र का संपादन करते हुए जेल भी जाना पड़ा। इन्होंने अपना जीवन लेखक, समाज सुधारक, संपादक व राष्ट्रभक्त के विभिन्न रूपों में गुजारा। इनकी 300 कहानियों के 17 संग्रह प्रकाशित हुए जो बाद में ‘मानसरोवर” के आठ खंडों में प्रकाशित किए गए। उपन्यासों में सेवासदन, गबन, कायाकल्प, कर्मभूमि और गोदान इनकी उत्कृष्टता की बयान करते हैं। 8 अक्टूबर 1936 को यह ब्रह्मलीन हो गए लेकिन लेखन के जो बीज इन्होंने बोए थे वह इनकी समृद्धि को सदैव हरीतिमा प्रदान करते रहेंगे।
प्रेमचंन्द्र की कई कहानियों और उपन्यासों पर लोकप्रिय फिल्में बनी। 1980 में इनके उपन्यास पर बना टेलीविजन धारावाहिक ‘निर्मला’ बेहद लोकप्रिय हुआ। 31 जुलाई 1980 में इनकी जन्मशती पर भारतीय डाक विभाग ने 30 पैसे मूल्य का डाक टिकट जारी किया।
प्रेमचंद की जयंती पर पाठक मंच के कार्यक्रम इन्द्रधनुष की 736वीं कड़ी में मंच की सचिव शिवानी दत्ता की अध्यक्षता में यह जानकारी दी गई।