नवयुग के पैगंबर थे राजा राममोहन राय

चिन्मय दत्ता, झारखंड।

भारतीय नवजागरण के अग्रदूत और आधुनिक भारत के जनक कहे जाने वाले राममोहन राय ने विभिन्न धर्मों का अध्ययन कर निष्कर्ष पाया कि धर्मों के बाहरी रूप, विभिन्न हैं परंतु मूल सत्य एक है। समाज सुधारक राजा राममोहन राय का जन्म  250 वर्ष पूर्व 22 मई 1772 को बंगाल के हुगली जिले में हुआ था जो ईश्वर चंद्र विद्यासागर और रामकृष्ण परमहंस का भी जन्म स्थान है।

राजा राममोहन ने ब्रह्म समाज का स्थापना की। इनके भजन कार्यक्रम में विवेकानन्द और रवीन्द्र नाथ टैगोर जाया करते थे। इनके बारे में नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अपनी पुस्तक ‘द इंडियन स्ट्रगल’ में लिखा है, ‘राजा राममोहन राय नवयुग के पैगंबर थे।’

राजा राममोहन राय ने सामाजिक कुरीतियों को लेकर अपने अनवरत प्रयासों से उन्हें दूर करने का सफल प्रयास किया, जिनमें सबसे बड़ी कुरीती सती प्रथा को खत्म करना था।    वर्ष 1812 की एक घटना है, जब राममोहन राय के बड़े भाई जगमोहन राय की मृत्यु के उपरांत उनकी पत्नी अलका मंजरी को जबरदस्ती चिता में बांध कर जला दिया गया।

इस घटना का राजा राममोहन के ऊपर गहरा प्रभाव पड़ा। इन्होंने सती प्रथा को समाप्त करने के लिए वर्षों तक निरंतर संघर्ष किया और आखिरकार 4 दिसम्बर 1829 को गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बैंटिक ने सती प्रथा के खिलाफ कानून बनाया।

बाल विवाह, जातिवाद, पर्दा प्रथा जैसे अंधविश्वास एवं कुरीतियों का विरोध करने वाले राममोहन का योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और पत्रकारिता क्षेत्र में भी रहा। 1821 में इन्होंने कोलकाता से बांग्ला पत्र ‘संवाद कौमुदी’ का प्रकाशन प्रारंभ किया।

इसी के साथ 1822 में फारसी पत्र ‘मिरात उल अखबार’ अंग्रेजी में ‘ब्रह्मनिकल मैगजीन’ का भी प्रकाशन इन्होंने किया। 25 जून 1831 को ईस्ट इंडिया कंपनी ने राजा राममोहन के सम्मान में एक भोज सभा का आयोजन किया था। 27 सितम्बर 1833 को ये ब्रह्मलीन हो गए।”
राजा राममोहन राय की 250वीं जयंती पर पाठक मंच के कार्यक्रम इन्द्रधनुष की 726वीं कड़ी में मंच की सचिव शिवानी दत्ता की अध्यक्षता में यह जानकारी दी गई।

 

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