जीवन की
मृगतृष्णा में
मुझे मिल जाता है
सचमुच सरोवर
मैं प्यास भी अपनी
बुझा लेता हूँ
क्योंकि मुझे
मृगतृष्णा
मृगतृष्णा सी
दिखाई पड़ जाती है।
यही है राज मेरी
जिन्दगी से लगाव का
इसलिए है जिन्दगी
मीठी – मीठी ,
अनूठी – अनूठी।
उपयुक्त साहित्यक रचनाएँ स्वर्गीय बी एन झा द्वारा लिखित पुस्तक इन्द्रधनुष से ली गई है ।