ये ग़ज़ल कुछ सुना कीजिए।
दो घड़ी गम भुला दीजिए।
आदमी थक के रफ्तार से।
कहता पत्थर बना दीजिए।
बोली गंगा भी अब हे मुनी।
जाँघ में फिर छिपा लीजिए।
राग – दीपक से हम जल गए।
मेघ – मल्हार गा दीजिए।
दे रही गम ये नजदीकियां।
फासले से चला कीजिए।
आ गया हमको गुस्सा अगर
आप तो मुस्कुरा दीजिए।
देह विरहन की पीली पड़ी।
जल्द गौना करा दीजिए।
हो न नफरत , जो नफरत से आप –
खूब नफरत बढ़ा लीजिए।
आपने ही लगाई है आग।
आप तो ना हवा कीजिए।
उपरोक्त गज़ल स्वर्गीय बी एन झा द्वारा लिखित पुस्तक इन्द्रधनुष से ली गई है ।
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