माँ ने बड़े प्यार से
मुझसे पूछा , बेटा
राम , लक्ष्मण , भरत , शत्रुध्न
इन सब में से क्या बनोगे।
मैंने छाती फुलाकर
माँ को गले लगाकर
कहा , शत्रुध्न बनूँगा।
माँ घबड़ाई
थोड़ा अकचकाई
पूछा , ऐसा क्यों बेटे
मैंने जवाब दिया —
रामजी बन गए
चौदह साल
चौदह दिनों में मैं
हो जाऊंगा बेहाल
राम ने मुश्किल से
रावण को मारा
और जिसके लिए मारा
उसे घर से निकाला —–
और लक्षमण ने
भाई और भाभी की
सेवा जरूर की
पर उर्मिला को छोड़ दिया
माना होती है
भाभी पूजनीया।
पर पत्नी ने क्या बिगाड़ा
कि खराब कर दिया
उस बेचारी का जीना।
और हे माँ
मुझे भरत भी नापसन्द है
पाई हुई गद्दी को
वह स्वयं ठुकराता है
अपने आप को
जवाबदेही से बचाता है।
इतिहास बताता है कि
गद्दी पाने हेतु
सैकड़ों युद्ध हुए।
पर गद्दी छोड़ने हेतु
भरत जी क्रुद्ध हुए।
नन्दीग्राम जाकर
अवधपुर को छोड़ दिया
और हर आज्ञा पत्र पर
वहीं से हस्ताक्षर कर भेज दिया।
अगर शत्रुध्न न रहता
अवधपुर राज्य में
तो कौन करता
प्रजा हेतु
आज्ञा का पालन ?
और आर्डर का इम्पलिमेन्टेशन
दूसरे के सिगनेचर पर
करना कितना आसान है।
इसलिए हे माताश्री
मैं तो शत्रुध्न बनूँगा
बिना कोई रिसपोन्सीबिलीटी के
प्रजा का पालन करुँगा।
उपरोक्त हास्य कविताएं स्वर्गीय बी एन झा द्वारा लिखित पुस्तक इन्द्रधनुष से ली गई है ।
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