गजल ; ये यादें

 

 

भरती कभी नागिन सी हैं फुफकार ये यादें
दीमक सी चाटती कभी – कभार ये यादें

वैसे तो एक बार ही मरता हर एक सख्स
करती है कत्ल रोज कई बार ये यादें।

बेवक्त कभी आप हंस पड़ेंगे , और कभी –
बेवक्त रुलाएगी ज़ार जाऱ ये यादें।

बीतेगा पल में आपका लम्बा समय कभी
पल को करे कभी मगर पहाड़ ये यादें।

आके तुरन्त छूके भाग करके बार बार
खेले लुकाछिपी हजार बार ये यादें।

होते हैं कभी आप अकले कहाँ जनाब ?
रहती हैं शत्रु या कभी बन यार ये यादें।

यादें वही क्यों एक हँसा दूसरा रोया ?
उनके लिए खिजाँ , मेरी बहार ये यादें।

यादें कभी फ़िज़ूल उलजुलूल भी आती
होती नहीं मगर हैं असरदार ये यादें।

स्थानीय मेहमान सी आदत लिए कभी
जल्दी चली जाती नजर के पार ये यादें।

बनती हैं ढीठ जाने का जब नाम न ले तो
करती हैं मेजबान को बीमार ये यादें।

यादें नहीं आए नहीं जाए तो मरे आप
जीवन बचा के कर रही उपकार ये यादें।

जिसके सहारे भूल न पाते खुदा को हम
वो कोई नहीं , रब से भी दमदार ये यादें।

उपरोक्त गजल स्वर्गीय बी एन झा द्वारा लिखित पुस्तक इन्द्रधनुष से ली गई है ।

 

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