तिल तिल क्यों मरते हो ? पूछा हमने बाबूलाल से।
बोले , गालों पर उनके दो तिल देखे जिस काल से।
नौ पुत्री पर पुत्री हुआ तो मुदित अनोखेजी बोले
कटे बुढ़ापा सुख से अब , फिर निकलूं माया जाल से
मरा गाँव में गाँव एक जन भी मैय्यत में नहीं गया
शहरीपन के जन्म दिवस पर लोग दिखे खुशहाल से
रिश्ते ने खामोशी दे दी , आप मियाँ धोखे में है।
वाकिफ हैं हम खूब आपकी टेढ़ी मेढ़ी चाल से
सदा भावना को बैठाया व्यवहारिकता के ऊपर
खाते आए अब तक हम चोटें सोलहवें साल से
क्षण में छलकाने वाली आँखें दो बेहतर कैसे हों ?
दो पल ही आँसू को ठहराने वाले दो गाल से
गीत – गज़ल के भाव स्वप्न में आते हैं खो जाते हैं।
नींद टूटने पर जुड़ जाते हैं हम रोटी – दाल से
उपरोक्त गजल स्वर्गीय बी एन झा द्वारा लिखित पुस्तक इन्द्रधनुष से ली गई है ।