मैं कलम थामकर यूं ही बढ़ता गया —-

मैं कलम थामकर यूं ही बढ़ता गया ,
बेतहाशा ही किस्से मैं गढ़ता गया।

थोड़ा सच झूठ ज्यादा मिलाता रहा ,
और किरदार मेरा बिगड़ता गया।
मैं कलम थामकर बढ़ता गया ,

मैंने लिखी कहानी तेरे साथ की ,
हुई दरमियां जो, हर एक बात की।

तोड़कर सारे वादे , जो तुझसे किए ,
तेरी यादों से हर पल झगड़ता गया।
मैं कलम थामकर यूं ही बढ़ता गया ,

मैंने लिखे पुलिंदे बड़े झूठ के ,
एक नाटक सा करता रहा रूठ के।

छल से पल भी चुराए तेरे साथ के ,
सच से नजरें चुराए यूं लड़ता गया।
मैं कलम थामकर यूं ही बढ़ता गया ,