एक रात भगवान ने
मुझे दर्शन दिया सपने में।
आनन्दित हो उठा मैं।
उन्होने बड़े प्रेम से
पूछा , कुछ माँग लो।
मैंने प्रभु से कहा
माँगना है कुछ नहीं
एक प्रश्न मेरा जान लो।
उन्होंने हाँ में सिर हिलाया।
मैंने पूछा , भगवान
तुम जहाँ जहाँ भी
हमारी धरती पर बसे हो
यानी के मंदिर , देवालय में
गिरिजा गुरूद्वारे में ,
तुम गूँगे की तरह
बोलते हो क्यों नहीं ?
अंधे की तरह तुम
देखते हो क्यों नहीं ?
बहरे की तरह तुम
सुनते हो क्यों नहीं ?
कारण बताओ। जल्दी समझाओ।
मेरे इस प्रश्न पर
भगवान कुछ उदास हुआ
दुख भरे स्वर में धीरे बताया –
तुम कहते हो ठीक
मैं गूँगा हूँ
बहरा हूँ अंधा हूँ।
कारण बताता हूँ।
सुनो समझाता हूँ।
मैंने इन्सानों में
जीवन को भर करके
चेतन बनाया।
पर क्या तुम जानते हो ?
इसके बदले में मैं
उनसे क्या पाया ?
उन्होंने हर जगह
जड़ रूप पत्थर में
मुझको बिठाया।
अब तुम्हीं बताओ ना
बोलना , सुनना या देखना
क्या पत्थर में होते हैं ?
मैं हैरान हो गया।
बोला भगवान आप
ठीक बता रहे हैं
मन ही मन पर सोचा
प्रभु जी मेरे मुख पर जूते लगा रहे हैं।
मैंने कहा , धन्यवाद
अच्छा अब चलता हूँ।
पर पुनः भगवान ने
लम्बी साँसे लेकर
उदास स्वर में कुछ ऐसे बोला
ठहरो कुछ देर , सुनो
कम से कम अपने में
तुमने मुझे नहीं ढाला
लेकिन क्या धरती के
जानवर भी मर गए थे ?
कीड़े मकोड़े क्या
वृक्ष भी सड़ गए थे ?
प्रभु मुख से सुनकर यह
मैं अत्यन्त दुखी हो उठा।
दिल मेरा फट गया।
मैं जोरों से रो उठा।
बेतहाशा मैं भागा।
टूट गया सपना नींद से जागा।
उपयुक्त पक्तियां इन्द्रधनुष पुस्तक बी एन झा द्वारा द्वारा लिखी गई हैं।