तुम्हारे साथ न होने से
समंदर के गहराई जैसा दर्द का एहसास
सचमुच मेरा जीवन कितना है उदास
तुम्हारे होने से ये आएगी वो संपूर्णता
नीर पीने से जैसे तृप्त होती है प्यास —
तुम्हारे बिन क्यारी के ये फूल भी कैसे मुरझाए हैं
खिलकर भी अपनी महक न बिखेर पाए हैं
तुम्हारे न होने की कसक
हर तरफ जैसे नागफनी उग आए हैं
जीवन के रंग कैसे अलसाए हैं —–
तुम्हें कब से पुकार रहा हूँ
शायद मेरे दर्द की आवाज तुम सुन न रही हो
या सुन कर अनसुना कर दे रही हो
क्यों मुझसे अजनबी जैसा बर्ताव कर रही हो
जबकि तुम्हारे बिना मेरा कोई अस्तित्व नहीं है
हमारा प्रेम तुम्हारे बिना नहीं ले सकेगा कोई रूप
तुम्हारे साथ ही ख़ुशियों की होगी धूप —
तुम्हारे न होने से मेरे जीवन में
ऐसे रिक्तता का आभास होता है।
जैसे सूरज उगने पर बादल से प्रकाश छुप जाता है।
तुम सच में मेरे जीवन का प्रकाश हो
मेरे जीने के लिए खुशनुमा एहसास हो।
बादल कितना भी कोशिश कर लें
तुम्हें मेरे जीवन में आना होगा
अपना इंद्रधनुषी प्रकाश फैलाना होगा
हमारे जीवन में अब तुम्हें
संगीत का मधुर स्वर सुनाना होगा
मेरे जीवन में छाई उदासी को मिटाना होगा —
– लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव
लेखन विधाएँ -कविता , कहानी , लघुकथा , आलेख , समीक्षा