क्यों खिलखिलाना भूल रहे है बच्चे

अनुभव शुक्ला

बचपन अगर खुशी और हर्ष के साथ न बीते तो सही मायने में बचपन नहीं कहा जा सकता। बच्चों के चेहरे की मुस्कुराहट किसी भी नीरस माहौल में जान डाल देती है , लेकिन समय के साथ – साथ जीवन इतना बोझिल हो गया है कि मासूम बचपन भी इससे अछूता नहीं रहा है। तनाव की गहरी छाप ने बच्चों के चेहेरों से हर्ष को गायब ही कर दिया है। इस कड़वे तनाव से उन्हें अभिभावक ही उबार सकते है। जैसे – जैसे जीवन में भाग – दौड़ बढ़ती जा रही है , वैसे – वैसे सभी तनाव की गिरफ्त में आते जा रहे हैं। बड़ों के तनाव को हमेशा गंभीरता से लिया जाता है। इसी के चलते बच्चों के चेहरों से गायब होती हंसी की चिंता बड़े करना भूल जाते है ।
पांच साल की दिशा के माता – पिता दोनों ही कामकाजी हैं। वे दोनों खुद में इतने व्यस्त रहते हैं कि उन्हें अपनी बेटी के बारे में सोचने का वक्त नहीं मिलता है। सुबह – सुबह दिशा को गुड़िया की तरह तैयार करके क्रेच छोड़ने और शाम करीब आठ बजे उसे क्रेच से घर लाने का काम दोनों नियमित रूप से करते थे लेकिन एक दिन दिशा ने अपनी मां से यह कहा कि आप सोनल की मम्मा की तरह क्यों मुझे दिन में लेने नही आते मैं हमेशा शाम को अकेली रह जाती हूं। उस दिन उसकी मां को लगा की वह अपनी बेटी के साथ कितना गलत कर रही है उस दिन उसने दिशा के उदास चेहरे को पहली बार ध्यान से देखा कि वहां कितनी मायूसी है इसी के साथ दिशा की मां ने तय किया कि वह अब उसे पूरा समय देने की कोशिश करेगी। 

 

 

  •    अकेलापन है सबसे घातक

बच्चों के लिये अकेलापन बहुत घातक हो सकता है जिस दंपति को सिर्फ एक संतान होती है उनके बच्चे के लिये तो अकेलापन और भी बोझिल हो जाता है ऐसे बच्चों को उनके माता पिता द्वारा अधिक से अधिक समय दिया जाना चाहिये दिशा के जैसे कई बच्चे दिन के छह सात घंटे क्रेच में गुजारते मन ही मन दुखी और तनावग्रस्त हो जाते हैं। क्रेच का बढ़ता चलन सयुंक्त परिवारों के टूटने का नतीजा है। एकल परिवारों में जहाँ पति – पत्नी दोनों ही कामकाजी होते है वहां बच्चे अपनों के बीच बहुत ही कम समय बिता पाते हैं। बच्चों के साथ खेलें और हंसे ।

माता पिता द्वारा बच्चों को खिलखिलाने और मौज मस्ती करने का पूरा समय देना चाहिये इसे अभिभावक और बच्चों के बीच एक दोस्त का रिश्ता कायम होता है ऐसे में बच्चों को अकेले रहने का मौका नहीं मिलता और वे दुख और तनाव से दूर रहते हैं।

बच्चों को रोज तो समय दे ही साथ ही साथ छुट्टियों में उन्हें बाहर घुमाने या पिकनिक पर भी ले जायें।

उनकी सही बातो को टालें नही बल्कि ध्यान से सुनें इससे उनकी सही सोच सामने आ जायेगी अगर किसी खास बात से उन्हें समस्या है तो उस दोस्ताना माहौल में बच्चों को वह बात बताने में संकोच नहीं होगा। बच्चो का मनोविज्ञान – घर में माता – पिता के लड़ाई – झगड़े भी बच्चों की खुशी गायब करते हैं। बच्चों को उनके तनाव से बाहर निकालने के लिए माता – पिता को उनकी समस्या की गंभीरता को समझकर उसे दूर करने के सफल प्रयास करने चाहिये। बड़े तो अपने तनाव और समस्याओं
को शब्दों में व्यक्त कर देते है लेकिन बच्चे ऐसा नहीं कर पाते। वे अपने हाव भाव से बताते हैं। अचानक से चीजों को तोड़ना , बात – बात पर गुस्सा करना आदि बच्चो में तनाव के लक्षण है।

  • मनोवैज्ञानिक सोच

मनोवैज्ञानिको का मत है कि बच्चे जब तनाव की गिरफ्त में हों तो उन्हें रोने का पूरा अवसर दें इससे उनका मन हल्का होगा उनकी समस्या को गंभीरता से समझे। उन्हे भरोसा दिलाये कि आप उनके साथ है साथ ही यह भी समझाये कि जीवन में सभी को सब कुछ नही मिलता उन्हें उन लोगों के बारे में बतायें जो उनसे भी बुरी परस्थितियो से जूझ रहे है।