गलतफहमी क्यों होती है?

गलतफहमी, मिथ्याबोध, भ्रांति! हर व्यक्ति जीवन के किसी न किसी पड़ाव पर, किसी न किसी व्यक्ति के प्रति गलतफहमी का शिकार होता ही है। हमें किसी के प्रति गलतफहमी न भी हो, तो हमारे प्रति किसी अन्य को गलतफहमी हो जाती है। कुल मिलाकर गलतफहमी के चक्र का सामना हर व्यक्ति अलग-अलग रूप में करता ही है।

गलतफहमी क्यों होती है? कैसे होती है? इससे क्या नुकसान हो सकता है? और इससे कैसे बचा जा सकता है?

ये कुछ ऐसे प्रश्न हैं, जो चाहे-अनचाहे हमारे मन में आते रहते हैं।

आज इसी पर चर्चा करते हैं।

पहले यह समझते हैं कि गलतफहमी होती क्या है?

गलतफहमी का अर्थ समझने में इसका हिंदी समानार्थक शब्द बहुत कारगर है, वह है मिथ्याबोध।

इस शब्द में ही इसका अर्थ समाहित है। मिथ्याबोध यानी जब किसी मिथ्या बात को हम सत्य मानने लगते हैं, उसे मिथ्याबोध कहा जाता है। उदाहरण के तौर पर हमें अकारण ही यह लगने लगता है कि हमारा सबसे अच्छा और करीबी दोस्त अब हमें पहले जितना समय नहीं दे रहा है। अब वह हमें उतना अपना नहीं मानता है, जितना पहले मानता था। पति-पत्नी के संबंधों में भी इस प्रकार की गलतफहमी हो सकती है। या जीवन के किसी भी रिश्ते में ऐसी गलतफहमी संभव है।

इसमें यह भी जान लेना जरूरी है कि गलतफहमी हमेशा नकारात्मक बातों से संबंधित नहीं होती है। यह सकारात्मकता से जुड़ी भी हो सकती है। इसका सामना युवा पीढ़ी को अक्सर करना पड़ता है। जैसे किसी ने प्रेम से बात कर ली तो हमें यह गलतफहमी हो गई कि उसे हमसे प्रेम है। हमारे बॉस ने दो बार तारीफ कर दी तो हमें लगने लगा कि अबकी बार सबसे ज्यादा अप्रेजल हमारा ही होने वाला है, भले ही काम के मामले में हमारा प्रदर्शन अच्छा न हो। यह भी गलतफहमी का ही प्रकार है।

प्रश्न है कि गलतफहमी होती क्यों है?

बात यदि जीवन के निकट संबंधों की करें, तो गलतफहमी का सबसे बड़ा कारण है संवादहीनता।

जब हम किसी बात को स्पष्टता के साथ किसी के सामने नहीं रख पाते हैं, तब वह आधी बात में से ही अपने अनुरूप पूरा अर्थ निकालने का प्रयास करता है। अधूरी बात का यही पूरा अर्थ गलतफहमी का कारण बन जाता है। निकट संबंधों में यह अपेक्षा तो होती है कि सामने वाला हमारी बातों को कहने से पहले ही समझ जाए। लेकिन यह सही नहीं है। भावनाओं को समझ जाना अच्छी बात है, लेकिन बातों को स्पष्ट तरीके से कह देना उससे भी ज्यादा अच्छी बात है।

असल में किसी बात का अर्थ केवल उस बात में नहीं होता है। कहने और सुनने वाले के आधार पर अर्थ बदलता है। यदि आप किसी से कुछ कहना चाहते हैं, तो पूरी बात कहें। इसी तरह कोई आपसे बात करे, तो उसे पूरा सुनें।

पूर्वानुमान भी बड़ी समस्या है।

असल में बात को पूरी तरह से जाने बिना अनुमान लगा लेना भी गलतफहमी का कारण बनता है। जब भी किसी बात के आधार पर अपना कोई अनुमानित निष्कर्ष निकालें, तो हमेशा थोड़ा ठहरकर सोचें जरूर। यदि उस अनुमान या निष्कर्ष से कोई संबंध प्रभावित हो सकता है, तो अच्छा होगा कि संबंधित व्यक्ति से खुलकर बात कर लें।

सबसे अहम बात, किसी व्यक्ति के बारे में किसी तीसरे व्यक्ति की कही गई बात के आधार पर धारणा न बनाएं। हर व्यक्ति अपने मन में किसी के प्रति बनाई हुई धारणा के आधार पर उसके बारे में बात करता है। किसी के पूर्वाग्रह के आधार पर कही गई बातों को सुनकर आप किसी के प्रति धारणा न बनाएं।

आंखों देखी बात को भी परखना जरूरी है।

कहा जाता है कि आंखों देखी बात कभी गलत नहीं होती। ऐसा भी नहीं है। यह जरूरी नहीं कि आपकी आंखें जो देख रही हैं, वह सही ही हो।

इस संबंध में एक छोटी सी कहानी है। एक राजा कई वर्ष बाद अपने राज्य लौटे थे। उन्होंने रानी को इसकी सूचना नहीं दी थी। रात के समय अचानक महल में पहुंचे। वहां रानी के कमरे में पगड़ी पहने कोई पुरुष दिखाई दिया। राजा को भ्रम हो गया। उन्हें रानी के चरित्र पर भी संदेह होने लगा। लेकिन इससे पहले कि राजा क्रोध में कोई कदम उठाते, अचानक उन्हें उस पुरुष की आवाज सुनाई दी। वास्तव में वह उन्हीं की पुत्री थी, जिसने खेल-खेल में पुरुष होने का स्वांग रचा हुआ था।

यह कहानी इस बात का छोटा सा उदाहरण है कि हमेशा हर चीज वैसी ही नहीं होती है, जैसी हमें दिख रही है। यदि कभी भी कुछ ऐसा दिखे या लगे, जिसे मानने में आपके मन को थोड़ी भी हिचकिचाहट हो, तो उसे पूरी तरह स्पष्ट करने का प्रयास करें।

वर्षों से बने संबंध भी टूट जाते हैं।

गलतफहमी जीवन में बड़े नुकसान का कारण बन सकती है। गलतफहमी बहुत पुराने से पुराने और गहरे से गहरे रिश्ते को भी घुन की तरह खाकर नष्ट कर सकती है। गलतफहमी वह डायनामाइट है, जो पहाड़ जैसे मजबूत लगने वाले रिश्ते को भी चूर-चूर करने में सक्षम है।

पीछे एक लेख में हमने बताया था कि रिश्ते और जूते हमेशा पॉलिश मांगते हैं। यदि समय-समय पर पॉलिश न मिले तो जैसे अच्छे से अच्छा जूता चटकने लगता है, वैसी ही गहरे से गहरा रिश्ता भी चटक सकता है। इसिलए संबंधों को समय दें। बातें खुलकर कहें और खुले मन से सुनें।

गलफहमी अवसाद का कारण भी बन सकती है।

एक और बात, गलतफहमी हमेशा किसी दूसरे से जुड़ी हो, यह भी जरूरी नहीं है। हम स्वयं की क्षमताओं को लेकर भी गलतफहमी का शिकार हो जाते हैं। असल में गलतफहमी का यह स्वरूप सबसे घातक है। क्योंकि इस गलतफहमी के टूटने पर व्यक्ति अवसाद का शिकार हो सकता है। स्वयं से मोह छूटना जीवन में सबसे घातक है। स्वयं को लेकर होने वाली गलतफहमी में व्यक्ति स्वयं से सीमा से परे उम्मीदें बांध लेता है और जब उम्मीद पूरी नहीं होती है, तो वह अवसाद का कारण बन जाती है। यह वास्तव में मनोचिकित्सा से जुड़ा मसला भी है। ऐसे में योग, ध्यान जैसी गतिविधियां सहायक हो सकती हैं। 

(समाधान है… कॉलम में ऐसे ही अनुत्तरित लगने वाले प्रश्नों के समाधान पाने का प्रयास होगा। प्रश्न आप भी पूछ सकते हैं। प्रश्न जीवन के किसी भी पक्ष से संबंधित हो सकता है। प्रश्न भाग्य-कर्म के लेखा-जोखा का हो या जीवन के सहज-गूढ़ संबंधों का, सबका समाधान होगा। बहुधा विषय गूढ़ अध्यात्म की झलक लिए भी हो सकते हैं, तो कई बार कुछ ऐसी सहज बात भी, जिसे पढ़कर अनुभव हो कि यह तो कब से आपकी आंखों के सामने ही था। प्रश्न पूछते रहिए… क्योंकि हर प्रश्न का समाधान है।)

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *