आपकी सेहत ; बच्चों के आँखों की नियमित जाँच क्यों है जरूरी ?

मीमांसा डेस्क।

दुनिया की ख़ूबसूरती को देखने और महसूस करने के लिये आँखों का स्वस्थ होना जरूरी है। मगर विकास के दौर में टेक्नोलॉजी के साथ ज्यादा समय व्यतीत करने , पढ़ाई में प्रतिस्पर्धा और आम जीवन में सौंदर्य के प्रति झुकाव के चलते खासकर बच्चों में तेजी से आँखों की परेशानी बढ़ने लगी है। उनमें चश्मे की जरूरत , मंद रोशनी , आँखों मे एलर्जी एवं भेंगापन आदि की समस्या देखी जा रही है। आँखों की कमजोरी के कारण दृष्टि दोष उत्पन्न हो रहा है , जिससे चश्मे की जरूरत बढ़ रही है।

दअरसल , युवाओं में 20 प्रतिशत अंधापन और 75 प्रतिशत कम दिखने की वजह रेफ्रेक्टिव एरर यानि दृष्टि दोष है। सभी प्रकार के दृष्टि दोष में आंख प्रतिबिंब [इमेज ] को रेटीना पर केन्द्रित नहीं कर पाती है और इसके लिये चश्मे के रूप में सही लेंस की जरूरत पड़ती है। दृष्टि दोष का सबसे आम रूप निकट दृष्टि दोष [मायोपिया ] है। यह उन आँखों में होता है , जो सामान्य से थोड़ी लंबी होती हैं , और उनके लिये माइनस पावर वाले चश्मे की आवश्यकता होती है। बच्चों में दृष्टि दोष का दूसरा रूप दूरदृष्टि दोष [हाइपरमेट्रोपिया ] हो सकता है ,
जहां आंख सामान्य से छोटी होती है और उनमें प्लस पावर वाले चश्मे की आवश्यकता होती है। वहीं , जहां कॉर्निया गोलाकार नहीं होता है , और स्पष्ट देखने के लिए बेलनाकार लेंस की आवश्यकता होती है। एक अनुमान के मुताबिक नई दिल्ली के विधालयों में पढ़ने वाले 5 से 15 वर्ष की आयु वाले 7 प्रतिशत से अधिक बच्चे मायोपिया से प्रभावित हैं।

इस बारे में बात करते हुए न्यूरो नेत्र विज्ञान , ग्लूकोमा , भेंगापन और बाल नेत्र विज्ञान में विशेषज्ञता प्राप्त गुड़गांव स्थित नेत्र विशेषज्ञ डॉ. दिग्विजय सिंह ने कहा कि दृष्टि दोष वाले ऐसे बच्चों को ब्लैकबोर्ड देखने , नजदीक से टीवी देखने या करीब से किताबें नहीं पढ़ पाने की शिकायत हो सकती है। ऐसी समस्या सामने आने पर बच्चों की आंख के परीक्षण के साथ चश्मे की जरूरत की जांच अवश्य करानी चाहिये। बच्चों में आँखों के मसल्स को आराम देने के लिये आँखों में आई ड्रॉप डालकर चश्मे के नंबर की जांच की जाती है। आई ड्रॉप देकर जांच किये बिना पावर नहीं दिया जाना चाहिये। क्योंकि सभी बच्चों में बढ़ने के साथ आँखों में कुछ पावर होती है , इसलिये नेत्र चिकित्सक के लिये यह जरूरी है कि वह बच्चों के आँखों के पावर की पहचान करे कि उन्हें सही पावर का चश्मा लगाने का निर्देश दें।

हाई माइनस पावर वाले बच्चों की आँखों की जांच करते समय रेटिना की जांच महत्वपूर्ण है , क्योंकि कई बार रेटिना की कमजोरी के चलते लेजर ट्रीटमेंट की आवश्यकता होती है। उचित दृष्टि और लगातार चश्मे के इस्तेमाल के साथ अच्छी तरह देखना संभव हो पाता है।

कई कारणों से दृष्टि दोष की समस्या उत्पन्न होती है। इनमें आनुवांशिक कारक [माता – पिता को अगर चश्मा लगा है } , समय से पूर्व जन्म , जन्म के समय कम वजन , पोषण में कमी , लंबाई में वृद्धि , पर्यावरण संबंधी कारक एवं आँखों की एलर्जी जैसे नेत्र रोग शामिल हैं।

नेत्र विशेषज्ञ डॉ. दिग्विजय सिंह के अनुसार , आधुनिक पीढ़ी में निकट दृष्टिदोष वाले व्यक्तियों की संख्या में वृद्धि का श्रेय नजदीक से कंप्यूटर पर काम करने , वीडियो गेम खेलने और टेलीविजन देखने को दिया जा सकता है। जब 4 वर्ष की आयु में सभी बच्चे स्कूल में दाखिला लेते हैं और उसके बाद प्रति वर्ष [या तो स्कूल मेडिकल जांच या नेत्र रोग विशेषज्ञ के दौरे पर ] दृष्टि दोष के लिए जांच करना महत्वपूर्ण है।

अगर दृष्टि दोष की जांच करके सुधार नहीं किया जाए तो बच्चा अपनी कक्षा में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाता है , उसे सीखने में देरी हो सकती है। विभिन्न मानसिक और शारीरिक क्रियाकलापों में उनकी एकाग्रता कम हो सकती है। दृष्टि दोष का सुधार नहीं किये जाने पर एम्बिलयोपिया यानि मंद दृष्टि और भेंगापन कारण भी बन सकती है।

गौरतलब है कि बचपन में भेंगापन होने या चश्मे का इस्तेमाल नहीं करने के कारण एक या दोनों आँखों में मंद दृष्टि की समस्या [एम्बिलयोपिया ] उत्पन्न हो जाती है। ऐसे मामले में कमजोर आँखें मंद हो जाती हैं , दिमाग इसकी क्षमता कम कर देता है। हालांकि उम्र बढ़ने के साथ यह समस्या ठीक हो सकती है। बचपन की शुरुवात से ही अगर आँखों की सही तरीके से जांच करायी जाए तो इस तरह की समस्या को पैदा होने से रोका जा सकता है।
कम उम्र में ही एम्बिलयोपिया का इलाज किया जाना सही होता है। ऐसी स्थिति के इलाज के लिये उचित चश्मा देना , एक आंख या पैच लगाना या भेंगापन की सर्जरी की जाती है।

दोनों आँखों के गलत अलाइमेंट को भेंगापन कहते हैं , जिसमें दोनों आँखे अलग – अलग दिशाओं में देखती हैं। यह न केवल सुन्दरता की दृष्टि से बुरा दिखता है बल्कि आँखों की एक साथ देखने की क्षमता को भी कम करता है। भेंगापन का इलाज चश्मा और सर्जरी देकर किया जाता है।
भेंगापन का इलाज अगर छोटी उम्र जैसे कई बार 1 वर्ष की उम्र से पहले ही किया जाए तो इसके  सबसे अच्छे नतीजे मिलते हैं।

डॉ. दिग्विजय सिंह इस बात पर जोर देते हुए कहते हैं कि अक्सर बच्चों को पता नहीं चलता कि उनकी आँखों में कोई समस्या है , इसलिये माता – पिता और शिक्षकों की जिम्मेदारी है कि समय पर ध्यान देकर अच्छे नेत्र चिकित्सक से उनकी नियमित जांच करायें।

नोट – यह लेख केवल जानकारी के लिये है अगर आपको आँखों से संबंधित कोई समस्या है तो अपने डॉक्टर से परामर्श करे।