रातें

रात सोने के लिए बनती है लेकिन

जागने की भी कई होती हैं रातें।

जेठ की वह रात जो आकुल सी करती।
वायु एकाएक जब ठंडक सी भरती।

बाँधकर घुघँरू घटा नभ से उतरती।
फिर थिरक सगीतंमय लय में बरसती।

वो बड़ी ममतामयी होती हैं रातें।
जागने की भी कई होती हैं रातें।

आ गए परदेस से पाहुन हमारे।
इस बसंती रात में वो प्राण – प्यारे।

दो ह्र्दय की धड़कनें कुछ यूँ पुकारे।
दो वदन दो प्राण होंगे एक न्यारे।

हाँ बड़ी ये रसमयी होती हैं रातें।
जागने की भी कई होती हैं रातें।

हो नहीं सकता है जिसका कोई सानी।
रात गठबंधन की होती है सुहानी।

व्यक्ति दो बनते हैं राजा और रानी।
रात , रहती है चढ़ी जिस पर जवानी

जिन्दगी भर ये नई होती हैं रातें।
जागने की भी कई होती हैं रातें।

दूर है परदेस में पाहुन हमारे।
दिन गुजरते हैं न यादों के सहारे।

रात बिच्छू की तरह जब डंक मारे।
,पी कहाँ , का मौन संदेशा पुकारे ।

तब बड़ी छलनामयी होती हैं रातें।
जागने की भी कई होती हैं रातें।

सुत – सुता जब हों नयन से दूर माँ के।
अक्षुपुरित नैन में है कौन झांके ?

जग रही , यादों को जो आँचल में ढांके ।
दर्द उस ममतामयी की कौन आंके ?

वो बड़ी पीड़ामयी होती हैं रातें।
जागने की भी कई होती हैं रातें।

पूस की हर रात देखो झोपड़ी में।
काँपते हैं प्राण तन की थरथरी में।

छत टपकती रात वर्षा की झड़ी में।
जेठ में लग जाए आतिश दो घड़ी में।

वा सबों से निर्दयी होती हैं रातें।
जागने की भी कई होती है रातें।

लुटती है स्मिता नारी की अक्सर।
है उतरती मजहबी नफरत का नस्तर।

बंद हर मंदिर में हो जाता है ईश्वर।
आदमी दिन से भी हो जाता है बदतर।

उफ ; बड़ी ये दानवी होती हैं रातें।
जागने की भी कई होती है रातें।

जो सदा चकवा – चकी को है रुलाती।
कौन सुख उनको अलग करके है पाती ?

हर अमाबस स्वयं पति को भक्ष जाती।
कालिमा की इसलिए जननी कहाती।

कलमुँही , हाँ , ये मुई होती हैं रातें।
जागने की भी कई होती है रातें।

दो प्रहर के बाद की जब रात होती।
स्वयं थक खामोश थोड़ी देर सोती।

प्राण तृण – तृण पर जो दिखते बूँद – मोती।
साक्ष्य है कि रात भर है रात रोती ।

इस तरह आई – गई होती हैं रातें।
जागने की भी कई होती हैं रातें।

रात रोती है सदा मजबूर है वो।
हाय , क्यों उसका विधाता क्रूर है वो ?

भाई की प्यारी बहन मशहूर है वो।
परन्तु अब तक भाई दिन से दूर है वो।

हाँ सभी मजबूर सी होती हैं रातें।
जागने की भी कई होती है रातें।

उपरोक्त साहित्यक रचनाएँ स्वर्गीय बी एन झा द्वारा लिखित पुस्तक इन्द्रधनुष से ली गई है।