अक्सर मेरे अनुजों द्वारा मुझसे यह सवाल किया जाता है ,जब जीवन का उद्देश्य मृत्यु ही है तो हमें जीवन क्यों मिला है या हमें जीवन क्यों जीना चाहिए ?
आध्यात्मिक दृष्टि से अगर देखें तो जीवन एक उपहार है और सामान्य शिष्टाचार है कि किसी के दिए उपहार की अवहेलना नहीं की जाती। यदि आप अपना स्वयं अर्जित कर सकते और अपनी इच्छानुसार स्वयं जन्म ले सकते तो आप को इसे हानि पहुँचाने का अधिकार मिल भी जाता लेकिन जिसे आपने स्वयं अर्जित किया ही नहीं उसको नष्ट करने का अधिकार भी आपको नहीं है।
जीवन जीना बाध्यता नहीं है , बल्कि कर्तव्य है। सोचिये आपके जन्म के समय आपके माता पिता ने जाने कितने ही विचार आपको लेकर किये होंगे जाने कितने यत्नों के बाद आपको पाया होगा उन्होंने साथ ही साथ आपको लेकर कितनी उम्मीदें – कितनी आशाएं बाँधी होंगी कि , उनका बेटा या बेटी उनका नाम रोशन करेंगे , भविष्य में जब माता पिता बुढ़ापे में काम करने में असमर्थ होंगे तो उनको सहारा देंगे। यह कोई बंधन नहीं है बल्कि यही तो सच्चा कर्तव्य है जो कि जीवन की परिभाषा को जन्म से लेकर मृत्यु के बीच का कालखंड नहीं बल्कि उत्तरदायित्व का बोध कराता है।
वास्तव में जीवन का सृजन विधाता ने अर्जन के लिए किया है , यहाँ अर्जन से तात्पर्य धन अर्जन से नहीं है बल्कि जान के अर्जन से है। खाना – पीना , बात करना , सो जाना तो प्रत्येक मनुष्य करता है लेकिन इतना ही जीवन तो पशु भी जी लेते हैं , मानव जीवन है तो उसके उद्देश्य भी अलग होते हैं , और उन उद्देश्यों की आपूर्ति के लिए ही व्यक्ति को प्रयास करते रहना चाहिए।
वस्तुत ; जीवन के तीन प्रमुख लक्षण हैं –
चेतना
चेष्टा
उन्नति
कोई भी भौतिक पदार्थ जिसमें चेतना हो , वह जाग्रत हो और उसमे अनुभूति करने की क्षमता हो जीवित कही जाती है , साथ ही वह वस्तु जिसमे चेष्टा है जो किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए प्रयास करता है या उसमें प्रयत्न करने की इच्छा जागृत होती है वह भी जीवित मानी जाती है और तीसरी अवस्था हैं वृद्धि यानि की उस पदार्थ के आकार , क्षमता अथवा विवेक में समयानुसार वृद्धि होना भी जीवन का लक्षण है।
कोरोना काल के बाद से हमें कई ऐसी घटनायें देखने को मिली है जब भारी संख्या में देश – दुनिया के लोगों में जीवन जीने की इच्छा क्षीण हो गई और उन्होंने आत्महत्या जैसे कदम भी उठा लिए। इन घटनाओं के कई कारण रहे जिसमें तनाव एक मुख्य कारण था। तनाव रुपी दीमक चेतना को खोखला कर देता है जिससे पीड़ित व्यक्ति की सोचने – समझने की शक्ति कम हो जाती है इसलिए हमें जीवन के महत्व को समझना होगा।
तो हमें अपनी चेतना में इस विचार का विकास करना होगा कि जीवन का उद्देश्य मात्र मृत्यु नहीं है , जीवन का उद्देश्य स्वार्थी होकर अपने और अपने परिवार का विकास करना भी नहीं है जीवन का उद्देश्य मानव जीवन को सार्थक एवं समृद्ध बनाना है। हमें जीवन इसलिए जीना होगा क्योंकि हमें जीवन मिला है इसीलिए सकल मानवता और सृष्टि के कल्याण की कामना करते हुए जीवन जीना हमारा दायित्व है।
जब तक हमारा उद्देश्य अपने जीवन को सार्थक सिद्ध करना नहीं होगा हम भ्रमित होते रहेंगे और जीवन से हमारा मोह भंग होता रहेगा। विकट परिस्थितियों के आगे नतमस्तक होकर आत्मसमर्पण कर देना और यह सोचना कि जीवन का उद्देश्य तो महज मृत्यु है यह विचार कहीं से भी उचित नहीं है।
कल्पना करिये आज़ादी की लड़ाई के दौरान यदि हमारे सभी पुरखे यह सोचकर स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी नहीं करते कि जीवन का उद्देश्य तो मृत्यु है ऐसे में क्यों यह संघर्ष करे ? और क्यों देश को आज़ाद कराने की कवायद में शामिल हो ? तो क्या आज हम आजाद हो पाते ? उत्तर है ,,, नहीं इस सोच के साथ यदि हमारे पुरखों ने वास्ता रखा होता तो आज परिस्थितियां वीभत्सात्मक होती। आज या तो हम आज़ाद नहीं होते या हम होते ही नहीं क्योंकि यह विचार हमारे पुरखों को आत्महत्या के प्रति प्रेरित कर चुका होता।
मनुष्य प्रकृति की सबसे श्रेष्ट कृतियों में से एक है , मानव के रूप में जन्म लेना अपने आप में सौभाग्य है ऐसे में हमें अपने कार्य – व्यवहार से परिवार , समाज , राष्ट्र , संसार और सृष्टि के समुचित विकास की कामना करते हुए जीवन उद्देश्य का चयन करना चाहिए और अंतिम क्षण तक जीवन को भरपूर तरीके से जीने का प्रयास करना चाहिए।
उपर्युक्त लेख राजिंदर चोपड़ा के द्वारा लिखित पुस्तक उत्साह से ली गई है।