अच्छे ए. सी. आर. की फिक्र ने
मेरी ढलती उम्र में
मेरी नाक पर बिठा दी
शून्य की एक अदद जोड़ी
तिक्त औषधि का जाम
मुंह में लगाए
पूरे परिवार को
चीनी की चासनी में
डूबते देखता हूँ
टपकती लार को
काबू में रखता हूँ
दर्द से पूछता हूँ
किधर है तू कठोर
उत्तर आता है
सर्वागव्यापी हूँ हुजूर
जमीर एक चीज का नाम है
कुछ सिरफिरों नें इस चीज को
उच्चासन दे रक्खा है
चाहे कोई जो समझे
मेरे लिए तो यह
बस एक कौड़ी है
और इसलिए मैंने
बौस के पास इसे
गिरवी रख छोड़ी है
एनुअल कानफिडेंशियल की चिंता ने
बच्चों का मुझ पर से
कोनफिडेंस उठा दिया।
वो किसी तरह पल गए।
पर आवारा निकल गए।
पर मैं भी अक्खड़ हूँ
कार्य की पूर्णाहुति में
विश्वास करता हूँ।
जिसे दिल से चाहा है
उसे कैसे छोड़ दूँ ?
उदर में चीनी न जाय
अपनी बला से
रोग तड़पाता रहे
पूरी कला से
जिह्ववा पर सटाकर
होठों पर बिठाकर
,यस सर , की चासनी में
अपने पाप – पुण्ययाधिकारी को
वरिष्ठ अधिकारी को
रोज ही डूबाता हूँ।
फूला न समाता हूँ।
हमारे मनीषियों ने
यही तो कहा है –
ये लोक आसार है
परलोक को सवारों।
इसलिए तो मैं भी
दफ्तर के वार्षिक रिर्पोट हेतु
रोज रोज यत्न से
बूटे सजाता हूँ
और अपने जीवन के
दैनिक रिर्पोट को
आग में जलाता हूँ।
उपरोक्त साहित्यिक व्यंग स्वर्गीय बी एन झा द्वारा लिखित पुस्तक इन्द्रधनुष से ली गई है ।
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