मैंने दो तरह के कवि देखे हैं
छोटा और बड़ा।
छोटा बड़े की बनाई दीवार से
शब्दों की इटें निकालता है।
छेद छोड़ जाता है।
शब्दों की ईंटों को
तोड़ता नहीं , फोड़ता नहीं
काटता नहीं छाँटता नहीं
बस चिपका देता
अपनी दीवारों में।
वह चोर है।
हाँ जी चोर है।
बेचारा पकड़ा जाता
ईमानदार चोर है।
और बड़ा कवि –
छोटे की बनाई दीवार से
शब्दों की सुरखी को
भावों की ईटों को
चुराकर –
मिलाता है सुरखी में पानी
और तोड़कर बनाता है
ईटों की गिट्टी।
तैयार मिश्रण से
अपने छत की ढलाई करता है।
ईमानदारी को चुराता वह चोर
असल चोर।
महाचोर।
पकड़ा नहीं जाता वह सरेआम
सिर्फ सूक्ष्मदर्शी नजर ही
उसे पकड़ पाती ,
पर बोल नहीं पाती।
कौन कहे ?
वह चोर है
गोसाई जी कह गए हैं।
समरथ के नहीं दोष।
फिर वह चोर कैसे ?
वह तो प्रयोग करता है।
प्रयोगवादी कहलाता है।
उपरोक्त व्यंग पक्तियाँ स्वर्गीय बी एन झा द्वारा लिखित पुस्तक इन्द्रधनुष से ली गई है।
https://youtube.com/@vikalpmimansa
https://www.facebook.com/share/1BrB1YsqqF/